पृष्ठ:प्रिया-प्रकाश.pdf/४२६

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सोरहवा प्रभाव (छप्पय) मुल- चौक चारु करु, कूष ढारु, परियार बाँधु वर । मुक्त मोल करु, खड्ग खोलु, सिंचहि निचोल बर ।। इय कुदाउ, दै सुरकुदाव, गुण गाउ रंक को। बानु भाव, सब धाम धाउ धन ल्याउ लंक को। यह कहत मधूकरशाह के रह्यौ सकल दीवान दवि। सब उत्तर केशवदास दिय घरी न, पानी, जान, कवि ॥१२॥ (नोट) इस छप्पय के प्रथम चार चरणों में तीन तीन बात हैं, जिनके उत्तर अंतिम चरण के अंत में है। ये सेह सखुने मधुकर शाह ने अपने दर्धार में कहे, तब केशव ने उत्तर दिये। शब्दार्थ-सकल दीवान दवि रह्यो-सब सभा चुप रही अर्थात् उत्तर नहीं दे सकी।