पृष्ठ:प्रिया-प्रकाश.pdf/४३३

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प्रिया-प्रकाश मानव हीरहि मोरद मोद दमोदर मोहि रही बन मा । मालवनी बलि केसक्दास सदा बस केलि बनी बलमा ||७०॥ (नोट)-इस छंद के प्रत्येक चरण को चाहै सीधा पढ़िये चाहे उलटा, पाठ वही रहेगा, अतः अर्थ भी एकही होगा। ऐसे छेदों के अर्थ अनेक प्रकार के होते हैं। लोग अपनी अपनी बुद्धि के अनुसार लगा लेते हैं । हम यह अर्थ करते हैं। ( कोई दूती नायिका से कहती है, अभिसार कराना चाहती हे ) अन्वयार्थ सह सोम समा बन सजै- चंद्रमा की चांदनी समेल बन शोभायमान हो रहा है। बीन नबीन बजैनचीन खरों और रागों से बीणा बज रही है। अतः मारलतानि बनाप्रति सारि-कामलता समान सुंदरी स्त्रियों को ( जो उस गान मंडली में हैं ) बीणा की घोरिया बनाते हुए (जड़वान् बनाकर ) और रिसाति बनायनि तालरमा=श्री ताल की बनावट पर रिसाती हुई (कि तुमसे अच्छी नहीं बनतो) मा सम सोह-तू लक्ष्मी समान शोभित हो। मानव हीरहि मोर द मोद दमोदर = मनुप्य के हृदयरूपी मोर को श्रानन्द देने वाले (घनश्याम ) दामोदर भी वहां है। मोहि रही बन-मा=(जिनके रूप पर) चन श्री मोहित होरही है। बलि = मैं बलिहारी जाऊं। माल बनी तेरे गले में माला शोभित है ( अधिक श्राभूषणों कीज़रूरत नहीं) केशवदास - केशव (कृष्ण) तो तेरे दास ही हैं (तुझ पर मोहित ही है) सदा बस वह तो सदा ही तुम्हारा शबदों है।