पृष्ठ:प्रिया-प्रकाश.pdf/४३४

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सोरहवाँ प्रभाव केलि बनी बलमा= वहीं केलि बनी (केलि का स्थान) है और वहीं वालम है, अतः तू चल और उनसे मिल । (विशेष)--कृष्ण ने चांदनी रात में गान मंडसी एकत्र की है। गाने बजाने वाली अनेक गोपियां एकत्र है। उसी मंडली में दूती राधिका को ले जाना चाहती है। अतः प्रशंसा करते हुए कहती है कि :- भावार्थ-वांदनी का समां खिला हुश्रा है, बन शोभित हो रहा है, अनेक गोपियां बीणा में नबीन राग बजा रही हैं। तू लक्ष्मी के समान है अतः अन्य सुन्दरियों को बीगा की बोरियों के तुल्य जड़ वा तुच्छ बनाते हुए, और श्री ताल की बनावट पर अपनी अप्रसन्नता प्रगट करते हुए (श्री नामक ताल अकारह सालों से मिलकर बनती है, इसका बनाना सहज नहीं, बड़ी प्रवीणा ही बीजर में श्रीताल बना सकती है) लक्ष्मी के समान वहां शोभित हो। सबको आनन्द पाय का मी नहीं हैं, उनके सौन्दर्य पर बन श्री मोहित हो रही, में बलि जाऊं, अधिक भार करने की ज़रूरत नहीं, माला तो पहने ही हो, कृष्णा तुम्हारे दाल ही हैं, वे तो सदा तुम्हारे बस में है, अतः चलो फेलि बन में कृष्ण से मिलो। (नोट)-अब आगे केशव जी कुछ ऐसे छन्द लिखते हैं, जिनसे विविध प्रकार के चित्र बन सकते हैं। चित्र के अनुसार ही उनके नाम होते हैं, यथा- मुल-इंद्रजीत संपाल लै किये राम रस लीन । छुद्रगीत संगीत लै भये काम बस दीन ॥ ७१ ॥ २८