पृष्ठ:प्रिया-प्रकाश.pdf/४३८

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सोरहवाँ प्रभाव धार सी शालती है ( दुःख देती है) तो भी वह बड़ी ही सुशील है ( किसी से अपना दुःख कहती नहीं) नोट-इसका चित्र इस प्रकार का होगा। पहले सीधा पढ़ो फिर उलटा पढ़ो। म मा मा स धामीत सा ल सी । सु (त्रिपदी) मूल रामदेव नरदेव गति परशुधरन मद धारि ! बामदेव गुरदेव गति पर कुधरन हद धारि ॥७३ ।। शब्दार्थ-देव-पर ब्रह्म । नरदेव = राजा। परशुधर = परशु- राम । बामदेव शिव । गति पर-जिनकी गतिविधि सब से परे है (जिनकी गति कोई समझ नहीं सकता)। कु-धरन = पृथ्वी को धारण करने वाले। हदधारि-मर्यादा को धारण करने वाले हैं। भावार्थ-राम जी हैं तो परब्रह्म, पर उनकी गति ( करणी चा रूप) राजाओं की सी है, और ऐसे प्रतापी हैं कि परशुराम भी उनके सामने अपना मद ( अहंकार) धारण किये न रह सके । वे ही राम जी शिव हैं, वे ही गए हैं, उनकी गतिविधि सब से परे है, वे हो पृथ्वी को धारण किये हुए हैं (पृथ्वी