पृष्ठ:प्रिया-प्रकाश.pdf/४४४

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४४२ प्रिया-प्रकाश नर मन जीवन हीन रदय सदय मति मत हरन । नर हत मति मय जगत केशवदास श्रीवर सरन ।। ८४ (नोट)-इससे चौकीबंध भी बन सकता है। (मंत्री गतिबंध) मूल -राम कहो नर जानि हिये मृत लाज सबै परि मौन जनावत । नाम गहौ उर मानि किये कृत काज तबै करि तीन बतावत ।। काम दहौ हर पानि हिये बृत राज जवै भरि भौन अनावत । याम बहौ बर पानि पिये धृत आज अबै हरि क्यों न मनावत ॥८५॥ (उपसंहार) मूल- यहि विधि केशव जानिये चित्र कवित्त अपार । बरणन पंथ बताय मैं दीन्हों बुधि अनुसार । ८६ । केशव सोरह भाव शुभ सुवरन मय सुकुमार । कवि प्रिया के जानिये ये सोरह श्रृंगार । ८७ । सुवरन जटित पदारथनि भूषन भूषित मान । कवि प्रिया है कवि प्रिया कवि की जीवन प्रान । ८८। पल पल प्रति अवलोकिबो पढ़िबो गुनिबो चित्त । कवि प्रिया को रक्षियो कबि प्रिया ज्यों मित्त । ८६ । भनल अनिल जल मलिन त विकट खलन ते नित्त । कवि प्रिया को रक्षियो कवि प्रिया ज्यों मित।१०। (समाप्त)