पृष्ठ:प्रिया-प्रकाश.pdf/४४९

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[३] जोह रहे थे, कारण यह कि बिहारी-सतसई पक अनमोल रन है । पर कठिन इतनी है कि बड़े २ लोग तक भी इसके अर्थ करनो से धोखा खा जाते हैं, और अर्थ ही नहीं समझते। इसी कठिनाई को दूर करने के लिए यह पुस्तक बनाई गई है। इसके टीकाकार ला भगवानदीन जी हैं। ये महाशय कितने अच्छे कधि हैं इसके कहने की आवश्यकता नहीं । क्यो- कि साहित्यलेवी लोग अच्छी प्रकार जानते हैं। इस लिये इस बिहारी-बोधिनी की तारीफ़ करने की अावश्यकता नहीं। पर इतना अवश्य कहे विना रहा नहीं जाता कि आज तक इसकी समानता की कोई टीका नहीं है। कागज और छपाई इत्यादि बहुत सुन्दर, लगभग ४०० पृष्ठ की पुस्तक है। मूल्य सजिल्द ११॥) अजिल्द ॥) ५-अलंकार-मंजूषा ( अलंकार का सुबोध ग्रंथ ) आजतक साहित्य संसार में इसकी बराबरी का और कोई अलंकार ग्रंथ नहीं है। अलंकार की जिस पुस्तक से चाहिये मुकाबिला कर लीजिये । यह पुस्तक हिन्दी साहित्य सम्मेलन की परीक्षात्रों में और बिहार की सरकारी परीक्षाओं में रक्खी गई है। इस- लिये इस पुस्तक की बिक्री दनादन हो रही है। जिस मनुष्य को अलंकार की जानकारी करना हो वह अवश्य इस अंथ को देखे, क्योंकि इस पुस्तक से बढ़ कर अलंकार का मान और किसी दूसरे ग्रंथ से नहीं हो सकता है। कागज और छपाई इत्यादि बहुत सुन्दर, पृष्ठ संख्या २५० मूल्य केवल १३) लेखक ला० भगवानदीन जी। आलमकेलि-(आलम और सेख कृत प्राचीन काव्य)- यह वही काव्य है जिसको पढ़ने के लिये लोग उनकी पुस्तक