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प्रिया-प्रकाश


शब्दार्थतनी = कंचुकी की तनी । टकटोरिटोलकर । सुधाऽधर-अधर सुधा । चूक भूल, गलती। पै लेकिन । धाय दूध पिलाने बाली। भावार्थ-सरल ही है। (विवेचन)-इस छन्द में यद्यपि पहले और दूसरे चरण में हेतु तथा चतुर्थ चरण में विकल्प अलंकार है, तथापि व्यंग्य चम- स्कृति सूचक न होने के कारण वे नगण्य हैं, अतः यह कविता प्राचीन मतसे अलंकार हीन मानी जायगी। ऐसेही कान्य में मन्न दोष माना जाता है। केशव ने इसे दोष माना है, पर अब लोग इसको दोष नहीं मानते, वरन् गुण मानते हैं। समयका उलट फेर तो है। ५--[अर्थहीन मृतक दोष का उदाहरण] मूल-काल कमाल करील चुरील तिसाल विसालनि चाल चली है। हाल बिहालति ताल तमाल प्रवाल कमाल कबाल लली है । लोल विलोल कपोल अमोल कचोल मोल कलोल कला है । बोलति बोल कपोलनि टोल तिगोल निगोल कल ल गलीहै।।१४॥ (विवेचन)-इस मत्तगयंद में नियम से सात भगण और दो गुरु तो अवश्य हैं, पर सवही शब्द निरर्थक हैं। अतः इसमें मृतक दोष है। नोट-अब आगे केशवजी कुछ दोष और बतलाते हैं। मूल-अगन न कीजै हीनरस, अरु केशव यतिभंग । व्यर्थ अपारथ हीनक्रम, कविकुल तजौ प्रसंग ॥१५॥ भावार्थ-१-अगण । २-हीनरस । ३-यतिभंग। ध-व्यर्थ । ५-अपार्थ । ६-हीनक्रम, ये दोष और भी बचाना चाहिये।