पृष्ठ:प्रिया-प्रकाश.pdf/४५०

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[४] खोजने लगते हैं। बड़े परिश्रम के बाद यह पुस्तक हाथ लगी है। शृगार रस का इसमें अच्छा वर्णन है। इस पुस्तक का सम्पादन कविधर ला० भगवान दीन जी ने किया है। कठिन २ शब्दों का अर्थ भी नोट में दिया हुआ है। कागज़ और छपाई इत्यादि बहुत सुन्दर है, पृष्ठ संख्या पौने दो सौ के लगभग है। इतना होते हुए भी मूल्य केवल १) है। इस पुस्तक को प्रत्येक साहित्य जानने वाले को पढ़ना चाहिये। ७-सनेह सागर (बिलक्षण कृष्ण चरित्र ) इस पुस्तक में कृष्ण जी की लीलायें भरी हैं, जिनको अाजकल के बहुत कम लोग जानते हैं। भाषा अत्यन्त सरल । कृष्ण-भक्तों के लिये अमूल्य बस्तु २०० वर्ष का प्राचीन अन्य बक्सी हंसराज द्वारा रचित। इस पुस्तकके पढ़नेसे कृष्ण भक्तिका मर्म अच्छी प्रकार झात हो सकता है। कागज और छपाई इत्यादि अत्यन्त सुन्दर है । सम्पादक ला० भगवानदीन जी। पृष्ठ संख्या १६० मूल्य केवल ॥) और ॥) है। अब बहुत थोड़ी प्रतियां रह गई हैं। मांग धड़ाधड़ पा रही है। जिन महाशयों को मंगाना हो जल्दी करें वरना दूसरे संस्करण की बाट जोहनी पड़ेगी। ८-विहारी-बोधिनी छोटी (सप्तम शतक) बिहारी सतसई का सातवां शतक जो एडवांस परीक्षा में सरकारने रखा है, उसीकी टीका ला• भगवान दीन जो ने बनाई है। अत्यन्त सरल पानी के समान विहारी के दोहों को कर दिया है। शब्दार्थ, भावार्थ, अलंकार इत्यादि से भर दिया है। अब उसमें कुछमी कठिनाइयां नहीं रह गई हैं। जिन लोगों को बिहारी के केवल १०० दोहों का मान करना हो वे इस पुस्तक को, और जिन लोगों को ७०० दोहों का शान करना हो ये बड़ी विहारी- बोधिनी को पढ़ें । मूल्य )