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प्रिया-प्रकाश


भावार्थ-तीन अक्षरों के समूह को गण कहते हैं। तीनों अक्षर गुरु हो वह 'मगण' है, तीनों अक्षर लघु हो उसे नगण जानो, आदि का अक्षर गुरु हो तदनंतर दो लघु हो उसे भगण कहो और अादि का अक्षर लघु तदनंतर दो गुरु हो उसे यगण मूल-जगन मध्य गुरु जानिये, रगन मध्य लधु हाथे । सगन अंत गुरु, अंत लघु, तगन कहें सब कोय ॥२१॥ भावार्थ-तीन अक्षरों के समूह में मध्य में गुरु हो उसे जगम, मध्य में लधु हो उसे रगण जानो, तथा तीन अक्षरों के समूह में अंत में गुरु हो उसे सगण और अंत में लघु हो उसे तगप समझो। मूल-आठो गण के देवता, अरू गुण दोष विचार । छन्दोग्रंथनि में कह्यौ, तिन को बहु विस्तार ॥२२॥ भावार्थ-सरल ही है। (गण देवता वर्णन) मूलमही देवना मगन की, नाग नगन को देखि ! जल जिय जानौ यगम को, चंद भगन को लेखि ॥२३॥ शब्दार्थ-मही= पृथ्वी । नाग = शेषनाग । मूल---सूरज जानौ जगन को, रगन शिखी मय मानि । बायु समझिये सगन को, तशन अकाश बखानि ॥२४॥ शब्दार्थ-शिखी- अनि। (गण जाति वर्णन) मूल----मगन नगन को मित्र गान, भगन यगन को दास । उदासीन ज त जानिये, र स रिपु केशवदास ॥ २५ ॥