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तीसरा प्रभाव

तीस भावार्थ-अमन और नगन की मित्र संज्ञा है। भगण और यगण को दास कहते हैं । ज त अर्थात् जगण और तग को उदासीन कहते हैं। और र स अर्थात् रगण और सगण को शत्रु कहते हैं। ( देवतानुसार गग-फल वर्गन) मूल-भूमि भूरि सुख देय, नीर नित आनदकारी । आगि अंग दिन दहै, सूर सुख सोखै भारी ।। केशव अफल अकाश, वायु किल देश उदास । मगल चंद अनेक, नाग बहु बुद्धि प्रकासै ।। यहि विधि कवित्त फल जानिये, कर्त्ता अरु जाहित करै । ताजि तजि प्रबन्ध सब दोष. गण सदा शुभाशुभ फल धरै ॥२६॥ शब्दार्थ-भूरि = बहुत । किल- निश्चय । कर्ता-काव्यकर्ता । जाहित= जिसके लिये। भावार्थ-भूमि (मग ) बहुत सुख देय। नीर (यगग) श्रानंदकारी है । आगि ( रगग) प्रतिदिन अंग जलावै। सूर्य (जगण) सुख को सोखै । आकाश (तगण) निराट निष्फल । वायु ( सगग) देश से उच्चाटन करे । चंद्र (भगण) मंगलदायक है । नाग ( नगण) बुद्धि प्रकाशक है। अतः शुभ तथा अशुभ गण विचार कर कविता कर। ये फल काब्यकर्ता और जिसके लिये कविता लिखी जाय दोनों के लिये है। (नोट) यह विचार केवल नरकान्य के लिये है । देवकाव्य के लिये नहीं, वह तो सदा ही शुभ है। और यह भी कि गणविचार केवल मात्रिक छंदों में ही करना चाहिये ।