भावार्थ-एकही शब्द का अर्थ को कई बार कहना । जैसे:-
मूल-मघवा धन आरूढ़, इन्द्र श्राजु अति सोहियो ।
ब्रज पर कोप्यो मूढ़, मेध दसौ दिस देखिये ॥ ५१ ॥
(विवेचन)-इसमें मघवा और इन्द्र, घन और मेघ में अर्थ
पुनरुक्ति है।
(दोष निवारण)
मूल-दोष नहीं पुनरुक्ति को, एक कहत कविराज ।
छाडि अर्थ पुनरुक्ति को, शब्द कहौ यहि साज ॥५२॥
भावाथ-यदि एकही शब्द कई बार पावे, पर उससे अर्थ-
पुनरुक्ति न होती हो तो उसे दोष नहीं मानते। जैसे:-
मूल-लोचन मैंने शरन तें, है कछु तो सुद्धि ।
तन बेध्यो, वेध्यो सुमन, बेधी मनकी बुद्धि ॥ ५३ ।।
(विवेचन)-इसमें 'बेधन' क्रिया का तीन बार प्रयोग है, पर
हरबार अन्य अन्य संज्ञा के साथ उसका अन्वय है, अत:
अर्थपुनरुक्ति नहीं है, अतः यह दोष नहीं है।
९-( देश विरोध दोष)
-~-~मलयानिल मन हरत हठि, सुखद नर्मदाकूल ।
सुबन सधन धनसारमय, तरुबर तरल सुफूल ॥५४॥
(विवेचन)-नर्मदाकूल में पानिल का होना और उसी
सघन वनमें कपूर का होना देश विरुद्ध है। मलयगिरि मैसूर
में है और कपूर कदलीवन में होता है जो बंगाल में है।
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तीसरा प्रभाव