पृष्ठ:प्रिया-प्रकाश.pdf/५८

विकिस्रोत से
यह पृष्ठ अभी शोधित नहीं है।
४५
तीसरा प्रभाव


भावार्थ-एकही शब्द का अर्थ को कई बार कहना । जैसे:- मूल-मघवा धन आरूढ़, इन्द्र श्राजु अति सोहियो । ब्रज पर कोप्यो मूढ़, मेध दसौ दिस देखिये ॥ ५१ ॥ (विवेचन)-इसमें मघवा और इन्द्र, घन और मेघ में अर्थ पुनरुक्ति है। (दोष निवारण) मूल-दोष नहीं पुनरुक्ति को, एक कहत कविराज । छाडि अर्थ पुनरुक्ति को, शब्द कहौ यहि साज ॥५२॥ भावाथ-यदि एकही शब्द कई बार पावे, पर उससे अर्थ- पुनरुक्ति न होती हो तो उसे दोष नहीं मानते। जैसे:- मूल-लोचन मैंने शरन तें, है कछु तो सुद्धि । तन बेध्यो, वेध्यो सुमन, बेधी मनकी बुद्धि ॥ ५३ ।। (विवेचन)-इसमें 'बेधन' क्रिया का तीन बार प्रयोग है, पर हरबार अन्य अन्य संज्ञा के साथ उसका अन्वय है, अत: अर्थपुनरुक्ति नहीं है, अतः यह दोष नहीं है। ९-( देश विरोध दोष) -~-~मलयानिल मन हरत हठि, सुखद नर्मदाकूल । सुबन सधन धनसारमय, तरुबर तरल सुफूल ॥५४॥ (विवेचन)-नर्मदाकूल में पानिल का होना और उसी सघन वनमें कपूर का होना देश विरुद्ध है। मलयगिरि मैसूर में है और कपूर कदलीवन में होता है जो बंगाल में है।