मूल-मरु सुदेश मोहन महा, देखहु सकल सभाग।
अमल कमल कुल कलित जहँ, पूरण सलिल तड़ाग ॥५५॥
(विवेचन मरु देश में कमलयुत जलपूर्ण तड़ाग का वर्णन देश
विरोध है।
१०-( काल विरोध)
-प्रफुलित नव नीरज रजनि, बासर कुमुद बिशाल ।
कोकिल शरद, मयूर मधु, बरषा मुदित भराल ॥५६।।
(विवेचन)-कमल का रात्रि में फूलना, कुमुद का दिनमें फूलना,
शरद में कोकिल, बसंत में मोर, तथा वर्ग में हंस का मुदित
होना वर्णन करना काल विरोध है।
११-(लोक विरोध)
मूल---स्थायी बार सिंगार के, करुणा घृणा प्रमान ।
तारा अस मंदोदरी, कहत सतीन समान ॥ ३७॥
(विवेचन)-यह बात प्रमाणित है कि वीर रस के स्थायी के
समय करुणा का वर्णन तथा सिंगार के समय वृणा का वर्णन
लोक विरुद्ध है, यानी करुणा के समय बीर रसायब हो
जाता है और घृणा के समय सिंगार रस काफूर हो जाता
है। इसी प्रकार तारा और मंदोदरी को सनी लियों के समान
वर्णन करना लोक विरुद्ध है।
१२-(नीति विरोध)
मूल---पूजा तानो वर्ण जग, करि विधन सो भेद ।
१३--(पागम विरोध)
पुनि लीवो उपबीत हम, पढ़ि लीजै सब बेद ॥५६॥
पृष्ठ:प्रिया-प्रकाश.pdf/५९
यह पृष्ठ अभी शोधित नहीं है।
४६
प्रिया-प्रकाश