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तीसरा प्रभाव
(विवेचन)-ऐसा कहना कि "विप्रो को छोड़कर अन्य तीनों वर्गों
को पूजो" यह नीति विरोध है। और ऐसा कहना कि "पहले
बेद पढ़ लें तब यज्ञोपवीत लेंगे" यह शास्त्र विरोध है।
मूल--याहिविधि औरहु जानियो, कविकुल सकल बिरोध ।
केशव कहे कछूक अब, मूढनि के अबिरोध ॥३०॥
शब्दार्थ-मूढनि के अविरोध - जो मूढ़ों के लिये भी अविरोध
हैं अर्थात् जिन्हें मुड़लोग भी स्वीकार कर लेंगे।
मूल--- केशव नारस विरस अरु, दुःसंधान विधानु ।
पातर दुष्टादिकन को, रसिकप्रिया तें जानु ॥ ६१ ॥
भावार्थ-इस तीसरे प्रभाव में कहे हुए १८ दोषों के अलावा
कुछ रसदोष जैसे नीरस, विरस, दुःसंधान इत्यादि और भी
हैं। उनको रसिकप्रिया ग्रंथ से समझ लेना चाहिये।
(नोट)-रसिकप्रिया के १६ वे अर्थात अंतिम प्रभाव में इनका
बर्णन है।