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चौथा प्रभाव


प्रशंसायुक्त मानव चरित्र कहते हैं और उनसे धन प्राप्त करके चैन उड़ाते हैं) और अतिनीच कवि वे हैं जो भंडौमा कविता करके लोगों का केवल मनोरंजन तो करते हैं, पर जिस से न तो धन प्राप्ति होती है न परलोक ही बनता है। ऐसे ही कवियों के लिये महाभारत में श्रीकृष्ण जी ने कहा है कि जो कबि स्वार्थ और परमार्थ रहित कविता करते हैं उन्हें क्या कहे अर्थात् उन्हें कवि कहना चाहिये या नहीं। ( कबिरीति वर्णन) मूल-~~-साँची बात न बरनहीं, झूठी बरनानि बानि । एकनि बरनैं नियम के, कबि मत त्रिविध बखानि । नोट--इस दोहे के पूर्वाद्ध में लाटानुप्रास है, अतः दो प्रकार से अन्वय होगा। (१) सांची बातन झूठी धरनहीं (२)---झूठी बातन सांची घरलहीं। भावार्थ-कबियों के वर्णन की यह बानि है कि (१) कतिपय सच्ची बातों को मोती कह कर वर्णन करते हैं, तथा (२) कतिपय झूठी बातों को सत्यवत् करके वर्णन करते हैं, तथा (३) कुछ बातों को लियम बद्ध करके वर्णन करते हैं। इस प्रकार कवियों की वर्णन शैली तीन विधि की है। नोट-प्राचार्य भिखारीदास जी ने भी इस विषय में यो सांची कातन युक्ति बल झूठी कह्त्त बनाय! झूठी बातन को प्रगट सांच देत टहराय ।।