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प्रिया-प्रकाश


नेकहू न भीजत मुसलधार वरषत, कीच न रचत रंच चित्त में बिचारिये ! केशोदास सावकास परम प्रकासन, उसारिये पसारिये न पिय पै बिसारिये । चलिये जू श्रोड़ि पट तम ही को गालो तन, पातरो पिछौर। सेत पाट को उतारिये ॥६॥ विशेष-कोई दूती किसी नायिका को कृष्ण पक्ष में अभिसार कराना चाहती है अतः कहती है कि:- भावार्थ-यह पतली सफेद रेशमी चादर उतार दो और अंधकार की काली चादर श्रोह कर चलो, क्योंकि यह अंधकारमय चादर ऐसी है कि न तो यह काँटो में उलझती है, न पैर से चप कर फटती है, न यह वायु से उड़ती है, जिससे अंग खुल जाय, न मुसलाधार वर्षा से भीगती है। न कीचड़ से खराब होती है, इस बात को चित्त से विचार कर देख लो । यद्यपि यह चादर बहुत लम्बी चौड़ी है, पर न तो यह कभी उसलती पुसलती है, न इसे प्रियतम के पास भूल आने का भय है, अतः रेशमी पतली सफेद चादर को उतार कर रख दो और गाढे अंधकार की चादर ओह कर चलो। (विवेचन)-अंधकार की चादर एक झूठी वस्तु है. पर कवि युक्ति से उसे सत्य बस्तु का सा रूपक देता है। युक्ति मनोहर भी है।