पृष्ठ:प्रिया-प्रकाश.pdf/६६

विकिस्रोत से
यह पृष्ठ अभी शोधित नहीं है।
५३
चोथा प्रभाव


(चंद्रिका के संबंध में झूठ का सत्य वर्णन) मूल-भूषण सकल घनसार ही के धनस्याम, कुसुम कलित केस रही छबि छाई सी। मोतिन की सरि सिर कठ कंठमाल हार, बाकी रूप ज्योति जात हेरत हिराई सी। चंदन चढ़ाये चारु सुंदर सरीर सब, राखी सुभ सोमा सबै बस्न बसाई सी। शारदा सी देखियत देखो जाय केशोराय, ठाढ़ी वह कुँवरि जुन्हाई में अन्हाई सी ॥१०॥ शब्दार्थ -धनसार = कपूर । सरि लर। जुन्हाई = चांदनी। (विशेष )---राधिका जी चांदनी रात में सुसजित होकर संकेतस्थल में ऋष्णजी की बाट जोह रही हैं। कोई दूती जाकर कृष्ण से कहती है किः-- भावार्थ-हे घनश्याम ! वह प्यारी कपूर ही के सब भूषण पहने हैं, बाल सफेद पुष्पों से संवारे हैं जिससे छबि छा रही है, सिर पर की सुवालर और कांड के कंठा और हार इत्यादि उसके रूप की ज्योति में खो से गये हैं। सर्वाङ्ग में सफेद चंदन का लेप है. जिस से शोजा भी है और सब कपड़े महक रहे हैं। हे केशवराय: जाकर देखो तो वह तो चंद्र चांदनी में अन्हाई हुई सी शारदा सी बनी उनी खड़ी तुम्हारी राह (विवेचन ) कपूर के श्राभूषण और चांदनी में स्नान करना बिल्कुल झूठ बातें हैं पर कवि कहता है,और मीलित अलंकार