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प्रिया-प्रकाश


द्वारा राधिका की रूपज्योति का ऐसा सुन्दर वर्णन करता है कि सुन समझकर चित्त प्रसन्न हो जाता है। यही झूठ का सत्यवत वर्णन है। ३-(कबि के नियमबद्ध वर्णन ) मूल--वर्णत चंदन मलय ही, हिमगिरि ही भुजपात । वर्णत देवन चरण तें, सिर तें मानुष गात ॥ ११॥ भावार्थ-कबिलोग चंदन का अस्तित्व मलयागिरि पर और भोजपत्र का हिमालय पर ही कहता है (चाहे ये बस्तुएं अन्यत्र भी मिलें) इसी प्रकार कवि देवों के रूप का वर्णन बरणों से आरंभ करता है, और मानव रूप का वर्णन सिर से। यही कबि नियम है। मूल---अति लज्जा युत कुल वधू गणिका गनि निर्लज्ज । कुलटनि सों कोविद कहत, अंग अलज्ज सलज्ज ॥ १२॥ भावार्थ-कुलांगना को सजावती, गणिका को निर्लज्जा वर्णन करेंगे, और कुलटा का वर्णन प्रसंगानुसार सलज और निर्लज दूनों प्रकार से करेंगे । यही कवि नियम है। मूल--बरनत नारी नरत ते, लाज चौगुनी चित्त । भूख द्विगुन साहस छगुन, काम आठगुन मित्त ॥१३॥ कोकिल को कल बोलियो, बरनत है मधुमास । बर्षाही हरषित कहैं, केकी केशब दास ॥ १४ ॥ दनुजन सों दिति सुतन सो. असुरै कहत वखानि । ईश शीश शशि बृद्धि की, बरनत बालक बानि ॥ १५ ॥