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प्रिया-प्रकाश


मुख बास = एला लवंगादि चर्बन ! मुखरामा--मुह को रैराना यह दो प्रकार से होता है (१४) दांतों को मिस्सी के रंगना। (१५) होठों को तांबूल से रंगना (१६) नेत्रों में कजाला देना । (नोट)-बोलनि, बलनि, हसनि, हेरनि इत्यादि सिंगार नहीं हैं। ये हाव हैं जो सिंगार को चोखा कर देते हैं। भावार्थ-सरलही (विजेचन)-इन से अधिक और भी अनेक प्रकार के सिंगार हो सकते हैं ता भी कधि लोग नियम बद्ध होकर इन सोलह का ही बर्णन करते हैं। मूल---महा पुरुष को प्रगट ही, बरणत बूषभ समान । दीप, थंभ, गिरि, गज, कलस, सागर, सिंह प्रभान ।१८! भावार्थ-किसी महा पुरुष को वृषभ, दीपक, स्तंभ, गिरि, गज, कलस, (मणि, मुकुट, अवतंस और ) सागर तथा सिंह करके वर्णन करने का कवि नियम है, जैसे :- उजागर धवल धरि धर्मधुर धाये खलतरू तोरिने को राजै गजराज सम, अरि गजराजन को सिंह सम गाये यामिन को बामदेव, कामिनि को कामदेव, रण जयर्थम रामदेव मन भाये जू । काशीश कुल कलस, जंबूदीप दीप केशो-- दास को कलपतरु इन्द्रजीन आये जू ॥१६॥