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प्रिया-प्रकाश
भावार्थ-मेघ की सी गंभीर बाणी सुनकर सखारूपी मोर
सुखी होते हैं और शत्रुहृदयरूपी जबासे जलते हैं। जिसके
भुजदंड इस भूमि के लिये अभयप्रदा ध्वजा हैं, और जिन
भुजारूपी सो को देख कर दुर्जन लोग उरते है। वेहा भुजा
गढ़रूपी वृक्षों को तोड़ने के लिये शिलावत होते हैं, और गढ़ों
के द्वारों की रक्षा के लिये जो भुजा किंवाड़े समान अड़ जाते
हैं । जिस इन्द्रजीत की ऐसी बाहें हैं, वह इस पृथ्वी का इन्द्र
युग युग राज करै जिसके राज में केशवदास राजा सा
बना आनंद करता है।
(विवेचन)-इस छेद में इन्द्रजीत के स्वर मेघस्वर सम,
भुजाओं को ध्वजा और सर्प सम, तथा उरस्थल को शिला
और कपाट सम वर्णन किया है। ऐसा ही कवि नियम है।
इसी को निमयबद्ध वर्णन करना कहते हैं।
चौथा प्रभाव समास