पांचवाँ प्रभाव
( काव्यालंकार वर्णन)
मूल-जदपि सुजाति सुलक्षणी, सुवरन सरस सुवृत्त ।
भूषण विनु न विराजई, कविता बनिता मित्त ॥
शब्दार्थ-जाति = (१) अच्छी जाति वाली (२)अच्छे वंश वाली।
सुलक्षणी = (१) सुन्दर लक्षणावाली (२) अच्छे लक्षण वाली।
सुबरन ( १ ) सुन्दर अक्षर वाली (२) सुन्दर रंग वाली ।
सरस = (१) जिसमें रस हो (२) जिसमें प्रेम हो ।
मुवृत्त = (१) अच्छे छंद वाली (२) सुभाषिणी ।
नोट-कविता की तीन जातियाँ हैं-ध्वनि, गुणीभूत व्यंग
और अपर वा चित्र, जिसमें ध्वनि उत्तम, गुणीभूच व्यंग
मध्यमा, और अवर अधम मानी जाती है। इस दोहे का अर्थ
कविता और बनिता दो पक्ष में लगेगा।
भावार्थ-(कविता पक्ष का)-
यद्यपि कविता ध्वनिमय हो,
सुश्पष्ट लक्षणायुक्त हो, रसानुकूल सुन्दरवर्ण भी उसमें हो,
रस की पूर्ण सामग्री भी उसमें हो, तथा सुन्दर छंद में कही
गई हो, पर बिना अलंकार के शोभित नहीं होती।
( वनिता पक्ष का ) यद्यपि बनिता अच्छे वंश की हो, सामु
निक के अनुसार शुभ लक्षणों वाली हो, शरीर का रंग भी
अच्छा हो, ( काली कलूटी न हो) रसीली हो, तथा मधुर
भाषिणी भी हो परंतु हे मित्र ! भूषणादि रहित होने से वह
श्री शोभित नहीं होती।
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