शब्दार्थ-हरिहय इन्द्र । जोन्ह = चांदनी । जरा-जरावस्था ।
मंदार = कल्पवृक्ष । हरगिरि-कैलास । सौध-चूना से
पोता महल । धनसार कपुर।
भावार्थ-ऊपर लिखी वस्तुओं का रंग कविलोग सफेद
मानते हैं।
मूल---बल, बक, हीरा, केवरो, कौड़ी, करका, कांस ।
कुंद, कांचली, कमल, हिम, सिकता, भस्म, कपास ॥ ६॥
शब्दार्थ-बल-बलदेव जी । करका= ओला, हिमोपल
कमल = पुंडरीक । सिकता बालू ।
मूल-~-खाँड, हाड़, निर्भर, चंवर, चंदन, हंस, मुरार ।
छत्र, सत्ययुग, दक्ष, दधि, संख, सिंह, उड़मार ॥७॥
शब्दार्थ-खाँड़ = शकर । निर्भर करना। मुरार= कमल की
जड़, भसीड़ । उड़मार= ( उड़माल ) तारागण !
मूल-शेष, सुकृति, शुचि, सत्वगुण, संतन के मन, हास ।
सीप, चून, भोंडर, फटिक, खटिका, फेन, प्रकास l
शब्दार्थ सुकृति-पुण्य ! शुचि = पवित्रता। भोडर अबरक।
फटिक- स्फटिक था फिटकरी । खटिका खरिया, छुही।
मूल---शुक्र, सुदर्शन, सुरसरित, वारण बाजि समेत ।
नारद, पारद, अमलजल, शारदादि सब सेत।
शब्दार्थ-शुक्र-शुक्रग्रह। सुदर्शन सुदर्शन चक्र । सुरसरितः
गंगा । ('मुर' शब्द का अन्य धारण और वाजि के साथ
मी जानो) सुरवारण ऐरावत । सुरवाजि उचैःश्रवा ।
पारद: पारा।
S
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पाँचवाँ प्रभाव