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प्रिया-प्रकाश


कर अपार सुख देता है। स्त्रियों में वही यश विलास होकर और सहज मृदु हास होकर शोभित होता है, और उदार जनों की बढ़ती भी वही यश ही है । अतः हे राम जी तुम्हारा यश सारे संसार का सिंगार हो रहा है। ( विवेचन)-इसमें भी चार नई सफेद वस्तुओं के नाम मालूम हुए। ३--विमल विचार । २-जनेऊ । ३- नियों की श्रानन्द क्रीड़ा। और ४-उदार जन का उदय । मूल-नारायण कीन्ही मनि उर अवदात गनि, कमला की बाणी भनि,शोभा शुभ सारु है । केशव सुरभि केश, शारदा सुदेश बेश, नारद को उपदेश, विशद विचारु है। शौनक ऋषी विशेषि शीरष शिखानि लेखि, गंगा की तरंग देखि, विमल विहारु है। राजा दशरथ सुत सुनौ राजा रामचन्द्र, रावरो सुयश सब जग को सिंगारु है ॥ १२ ॥ शब्दार्थ-अवदात-चौड़ा, उदार । सुरभिचमरी गाय । शीरष: (शीर्ष ) सिर । शिखा = चोटी। भावार्थ-हे राम जी ! तुम्हारा सुयश सारे संसार का सिंगार होरहा है। श्रीनारायण ने उसे ही अपने उदार हृदय की मणि बनाया है, कमला की वाणी और शोभा तथा शुभ का सार पदार्थ वही यश है। केशव कहते हैं कि चमरी गाय ने अपने बाल ( जिनसे चँवर बनती है ) शारदा ने अपना सुन्दर भेस,