भावार्थ ---जो बाल सहज ही बड़े सुन्दर, चिकने, काले और
सुगंध के धाम थे अब ये उलटे नेनों को दुख देने वाले हो गये
(पहले उन्हें देख कर नेश सुखी होते थे )। वे बाल हैं या
सिंगार को नाश करने वाले किसी शिकारी के सरहथ (शाल)
। हैं अथवा जरा के अद्भुत दृत है, या मृत्यु के लायक
पेशगो अफसर हैं। वक्षस्थल पर के सफेद बाल ऐसे लसते
हैं मानो यसराज के वाण हैं।
मुल-लसैं सितलोम सरीर सबै कि जस जसे रूपे के पानी लिखायो
सुरूप को देश उदास की कीलनि कीलित कै कि कुरूप नसायो ।।
औरै किधों केशव ब्याधिन को किधौं आधि के अंकुरअंतनपायो ।
जरा सर पंजर जीव जन्यो कि जुरा जरकंबर सो पहिरायो॥१५॥
शब्दार्थ-उदास = उजाड़ना (लोहे की कीलें मंत्रित करके
जहां तहां गांव में माड देने से वह गाँव उजड़ जाता है ।
इस प्रयोग को तंत्र शास्त्र में 'कालन' कहते है)। कीलित
कै- कीलें गाड़कर । प्राधिमानसिक यथायें (यथा
चिंता, शोक, पश्चात्ताप इत्यादि)। अंतन पायो - जो असंख्य हैं।
भावार्थ-ये शरीर भर में सफेद बाल है कि जरावस्था ने अपना
सुयश चांदी की स्याही से लिखाया है उसके अक्षर हैं । या
कुरूप ने उहासन मंत्र से कीलित कीलें गाड़कर स्परूप के
देश को उजाड़ कर नष्ट कर दिया है। या ये व्याधियों की
ज हैं, अथवा मानसिक व्यथाओं के असंख्य अंकुर हैं । या
जरा ने जीव को शरपंजर करके घेर रखा है या मृत्यु ने जीव
को ज़रदोजी दुशाला शोढ़ाया है।
(नोट)यत्तिक सफेद वस्तुओं का ज्ञान कराया गया जिनके
पृष्ठ:प्रिया-प्रकाश.pdf/७९
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पाँचवा प्रभाव