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पाँचवा प्रभाव


शब्दार्थ-मंगल = ( पार्वती का एक नाम 'मंगला' भी है अतः) मंगलकारी गुण, मांगल्यगुण। रजनी, मंगली हलदी। दीपति = दीति, कांति। धन जाय वसो है जिस से बादल जला जाता है। रोचन गोरोचन । गौरी-पार्वती। हाटक - सोना। करहाट कमल पुष्प के बीच की छतरी जिसमें कमल बीज पैदा होते हैं । कमल का बीज कोश । भावार्थ-पार्वती जी के मांगल्यगुण से ब्रह्मा ने हलदी बनाई, ईसी से उसका नाम 'मंगली' रखाया। उनकी कांति से दामिनी बनाई, पर उसे चंचला समझ कर श्राकाश की ओर उड़ा दिया, उसी से अब तक बादल जले जाते हैं। उनकी अंगवास से गोरोचन बनाकर कुछ सुगंध केतकी और चंपक में भी भर दी है। तदनंतर गौरी जी को गोराई का मैल लेकर सोने से लमाकर करहाट तक जितनी अन्य पीली वस्तुएं हैं बनाई हैं। ३-( कारे वर्गन) मूल-विंध्य, वृक्ष, आकाश, अास, अर्जुन, खंजन, सांप । नीलकंठ को कंठ, शनि, व्यास, बिसासी, पाप ॥ २० ॥ शब्दार्थ-विंध्य =विंध्याचल पर्वत असितलवार । अर्जुन पांडव अर्जुन। नीलकंत= (१) महादेव, (२) मोर। भ्यासव्यासमुनि । बिसासी = विश्वासघाती। मूल----राकस, अगर, लँगूरमुख, राहु, छांह, मद, रोर। रामचंद्र,धन, द्रौपदी, सिंधु, असुर, तम, चोर ॥ २१ ॥ शब्दार्थ मद = नशा अर्थात् मादकता (मादक बस्तु नहीं)। रोरदरिद्र । सिंधु-समुद्र की मूर्ति ( जल नहीं) 25