शब्दार्थ-जंबू
कोल।
मूल-जंबू, जमुना,तैल, तिल, खलमन, सरसिज, चीर ।
भील ,करी, बन, नरक, मसि, मृगमद, कजलनीर ।। २२ ।।
जामुन फल । सरलिज = नीलकमल । चीर =
चीड़ नामक वस्त्र जो नील में रंगा होता है जिसे नीच जाति
की स्त्रियाँ पहनती हैं। करी= (करि) हाथी । ससि = स्याही,
अथवा मूछों का नवागम जिसे मसिभीजना' कहते है।
मृगमद- कस्तूरी। मालनीर- कजरारी आँख का आंसू ।
मूल----मधुप, निशा, सिंगाररस, काली, कृत्या,
अपयश, रीब, कलंक, कलि, लोचन तारे लोल ॥ २३ ॥
शब्दार्थ-काली कालिकादेवी । कृत्या मंत्राभिचार से
मारण के लिये जो शक्ति उत्पन्न होती है ( जिसे आजकल
'न्यूट' कहते हैं ) कोल - (१) सूत्रार (२) एक जाति विशेष जो
जंगली है । कलि = कलियुग । लोचनतारेख की
युतली।
मूल-मारग अगिनि, किसान, नर, लोभ, छामे, दुख, मोह ।
बिरह, यशोदा, गोपिका, कोकिल, महिषी लोह ॥ २४ ॥
शब्दार्थ ---मारग गिनि = जिस रास्ते से अग्नि चलती है बुझ
जाने पर वह काला हो जाता है। किसान = स्वतिहर, काश्त-
कार किसान की स्त्री नहीं छोभ = क्रोध। यशोदा-नंद पनी
गोपिका-ग्वालिन (गोप नहीं ) । महिषी = भैंस।
मूल- कांच, कीच, कच,काम, मल, केकी, काक, कुरूप ।
कलह, क्षुद्र, छल आदि दै कारे कृष्ण सरूप ॥ २५ ॥
शब्दार्थ-कच-बाल । कुरूप कुत्सितरूप। आदिदै इस
के कहने का तात्पर्य यह है कि कलह, छल इत्यादि के समान
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प्रिया-प्रकाश