जैसे,
उसके प्रताप की कथा अकथनीय है। राम जी के हाथ में
जो तलवार है वह तलवार नहीं वरन् पूर्ण प्रताप रूपी दीपक
की कजल रेखा है।
नोट-तलवार का रंग काला माना गया है, इसी से ऐसी
उक्ति वन पड़ी।
(पुनः)
मूल-हंसनि के अवतंस रचे रंच कीच करि.
सुधा सों सुधारे मठ कांच के सो
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गंगा जू के अंग संग यसुना तरंग बल --
देव को बदन रच्यो वारुणी के रस सों ।।
केशव कपाली कंठकूल कालकूट
अमल कमल अलि साहै ससि सस सों।
राजा रामचद्र जू के बास बस भारे भुप,
भूमि छोडि भागे फिर ऐसे अपजस सों ॥ २७ ॥
शब्दार्थ-अवतंसशिरोभूषण, पर यहां पर सिर ही का अर्थ
है। रचे- रंगे है। सुधासों सुधारे मठ = चूने से घुते हुए'
श्रति उज्वल । रच्यो=₹गा हुआ। वारुणी के रस नशा।
कंठकूल-कंठ । अमल कमल =पुंडरीक। सोहै = (व्यंगसे)
ऋशोभित होता है । सस-मृग (चन्द्र कलंक )1 पेसै व्यर्थ,
दिना युद्ध किये ही। भूमि = अपनी राज्यभूमि, निज निज देश।
मावार्थ-राजा रामचन्द्र जी की आस से बड़े बड़े राजा निज
देश लजकर भागे फिरते हैं उनका यह भागना अकारण है,
लड़ाई नहीं हुई, केवल उन्होंने यह सोच लिया है कि हम राम
के सामने ठगे नहीं, रण से ! भागना ही पड़ेगा,
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प्रिया-प्रकाश