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पाँचवा प्रभाव


तब हमारा अपयश होगा और हम लोग अपयश से वैसे ही कलंकित होंगे जैसे सिर पर कीचड़ लगाये हुए हंस, वा कांच के कलस वाला स्वच्छ सफेद देवालय, वा यमुना तरंग युक्त गंगा, वा बारुणी के नशे से युक्त बलदेव जी का चेहरा, वा विष युक्त शंकर का गला, वा काले भौंरे से युक्त सफेद कमल वा मृगांक से चन्द्रमा। (नोट)-कीच, कांच, यमुना, नशा, विष और और सुगांक को काला मानने यह मनोहर उक्ति कैसी चमत्कारिक हो गई है। ४-(अरुण वर्णन!) मूल-इन्द्रगोप. खद्योत, कुज, केसरि, कुसुम बिशेषि । मादेरा, जगमुख, बाल रवि, ताँबो, तक्षक लखि॥२८॥ शदार्थ-इंगोप= बीरबहूटी। कुजमंगलग्रह। कुसुम विशेष = कोई खास लाल फूल । गजमुख = गणेश । तक्षक = तक्षक नामक सर्प। मूल --- रसना, अधर, दृगंत, पल, कुक्कुटशिखा समान । माणिक, सारससीस, शुक, बानर बदन प्रमान ॥ २६ ॥ शब्दार्थ-द्वगंत-पाखों के कोने । पल-मांस । शुक वानर बदन-शुक बदन और बानर बदन (मुख) । मूल-कोकिल, चाख, चकोर, पिक, पारावत नख नैन । चुंच चरण कलहंस के, पकी कुंदुरू ऐन ॥६॥ शब्दार्थ-चाख = नीलकंठ । पिक- ( पिकांग) पपीहा । पारावत कबूतर (इन पक्षियों के नख और नैन ) । चंच-चोंच।