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प्रिया-प्रकाश


है ही दूसरा अर्था पार्थ (पांडव ) का हो, तो श्याम रंग का बोध होगा। मूल-हरिगज सुरगज समुझिये, फिर हरिगज गज जाल । कोकिल सों कलकंठ कहि, पुनि फलहस बखान ॥ ४१ ।। भावार्थ-'हरिगज' शब्द के दो अर्थ-(१) इन्द्र का हाथी ऐरावत-इससे सफेद रंग का बोध, (२) वह गज जिसको किशु ने माह से बचाया था, वह काला था, अतः इस अर्थ में श्याम रंग का बोध होगा । 'अरूपांड' के दो अर्थ (१) क्रोपलश्यामरंग बोधक (२) कलहंस-तरंग का बोधक। मूल --'कृष्णनदीवर' शब्द सों, गंगा सिंधु नखानि । 'नारद' निकसे दांत सों, अस जु नीर को दानि ॥ १२ ॥ भावार्थ-'कृष्णनदीबर' के दो अर्थ (१) गंगा-स्वेनरंवा बोधक (२)-समुद्र-श्याम रंग बोधक । 'नीरद' शब्द के दो अर्थ हैं (१) मुंह से निकला हुआ दाँत-इस अर्थ में श्वेत रंग का बोधक (२) मेघ--इससे श्याम रंग का योब होगा। ( ख )--श्वेत और पीत। मूल-शिव विरंचि सों 'शंभु' भनि, 'रजत' रजत अरु हेम । स्वर्ण शरभ सों कहत हैं, अष्टापद करि नेम ॥ ४३ ॥ भावार्थ-'शंभु' शब्द के दो अर्थ-(१) शंकर-इस अर्थ में श्वेत वोधक (२) ब्रह्मा-इस अर्थ में पीत अंग जानो। 'रजत' चाँदी के अर्थ में श्वेत रंग, और सोने के अर्थ में पीत समझो। 'अष्टापद' शब्द के दो अर्थ-(१) सोना-इस