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प्रिया-प्रकाश


परम सुवास पुनि पियूष निवास, परि-- पूरन प्रकास केशोदास भू-अकाश गति । बदन मदन कैसे श्री जु के सदन जेहि, सोदर सुभोदर दिनेश जू के मित्र अति । सीता जू की मुख सुखमा की उपमा को सखि, कोमल न कमल, अमल न रजनिपति ॥ ५ ॥ (नोट)-कोई सखी सखी प्रति कहती है कि कमल कोमल न होने से तथा चांद्रमा कलंक रहित न होने से सीता शू के मुख की समता नहीं पा सकते, यद्यपि उनमें भी अनेक गुण हैं। भावार्थ-'कमल' विष्णु को हाथ का भूषण है, उसके मुकुल (मुकुर.) सर्व दुख खंडन हैं ( देखने तथा संघने से आनन् प्रद हैं) ऐसी बात पृथ्वी के सब बुद्धिमान लोग कहते हैं। उसमें बहुत उत्तम सुगंध है, और वह अस्तवत मकरंद का निवासस्थान है, और उसमें परिपूर्ण प्रफुल्लता भी होती है (खूध गहगहा के फूलता भी है ) और पृथ्वी और आकाश में सर्वत्र पाया जाता है (श्राकाश गंगा में भी कमलों का होना माना जाता है । वह मनोहरता में काम का सा मुख, और संपत्ति में लक्ष्मी का घर ही है, उसका सगा भाई शुभ- दर (शख) है, सूर्य का बड़ा सिव है। इतने अच्छे गुण होने पर भी वह सीता के मुख की समता इस लिये नही पा सकता कि वह कोमलता में उसके समान नहीं है (वास्तव में कमल की पंखुरियां कोमल नहीं होती )