पृष्ठ:प्रिया-प्रकाश.pdf/९५

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छठाँ प्रभाव


'चंद्रमा' यद्यपि सूर्य किरणों से मंडित होता है, केलावान है (सकल ) दुख खंडन ( आनंद प्रद ) है, सूरत में मुकुरवत (स्वच्छ ) है, ऐसा विद्वान लोग कहते हैं। परम उच्च स्थान (आकाश ) में उसका सुन्दर बासस्थान है, पुनः स्वयं अमृत का घर है, प्रकाश भी उसका पूर्ण है. पृथ्वी और आकाश में उसकी गति है ( सर्वत्र उसका प्रकाश पहुंचता है) काम के मुख के समान सुंदर है, श्री (कांति ) का घर ही है, शुभोदर अर्थात् शंख उसका सहोदर है, और सूर्य देव का बड़ा मित्र है, तथापि अकलंक न होने से सीता के मुख समान वह भी नही हो सकता। २-(आवर्त वर्णन) आवर्त घूमने वाले, जो वृत्ताकार मार्ग पर घूम कर पुनः अपने स्थान पर पाजाय । मूल-~ये आवर्त बखानिये, केशवदास सुजान । चकरी, चक्र, अलात अरुं, आलपत्र, खरसान ॥६॥ शब्दार्थ-चकरी- (१) चकी (२) आतशबाजी की चकरी । चक्र =(१) सुदर्शनचक्र (२) कुम्हार का चाक । अलात = बनेठो । आतपत्र-छाता। खरसान- सिकलीगर वा कुदेरे का सान वा मरसान। मूल--दुहूँ रुख मुख मानौ पलट न जानी जात, देखिकै अलातजात जाति होति मंद लाजि । ऋशे।दास कुशल कुलाल चक्रमन, चातुरी चित कै चारु भातुरी चलत भाजि ।