'चंद्रमा' यद्यपि सूर्य किरणों से मंडित होता है, केलावान
है (सकल ) दुख खंडन ( आनंद प्रद ) है, सूरत में मुकुरवत
(स्वच्छ ) है, ऐसा विद्वान लोग कहते हैं। परम उच्च स्थान
(आकाश ) में उसका सुन्दर बासस्थान है, पुनः स्वयं
अमृत का घर है, प्रकाश भी उसका पूर्ण है. पृथ्वी और
आकाश में उसकी गति है ( सर्वत्र उसका प्रकाश पहुंचता है)
काम के मुख के समान सुंदर है, श्री (कांति ) का घर ही है,
शुभोदर अर्थात् शंख उसका सहोदर है, और सूर्य देव का
बड़ा मित्र है, तथापि अकलंक न होने से सीता के मुख
समान वह भी नही हो सकता।
२-(आवर्त वर्णन)
आवर्त घूमने वाले, जो वृत्ताकार मार्ग पर घूम कर पुनः
अपने स्थान पर पाजाय ।
मूल-~ये आवर्त बखानिये, केशवदास सुजान ।
चकरी, चक्र, अलात अरुं, आलपत्र, खरसान ॥६॥
शब्दार्थ-चकरी- (१) चकी (२) आतशबाजी की चकरी ।
चक्र =(१) सुदर्शनचक्र (२) कुम्हार का चाक । अलात =
बनेठो । आतपत्र-छाता। खरसान- सिकलीगर वा कुदेरे
का सान वा मरसान।
मूल--दुहूँ रुख मुख मानौ पलट न जानी जात,
देखिकै अलातजात जाति होति मंद लाजि ।
ऋशे।दास कुशल कुलाल चक्रमन,
चातुरी चित कै चारु भातुरी चलत भाजि ।
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