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छठाँ प्रभाव


बाल, चंद्रिका, बालशशि, हरि, नख, शूकर दंत । कुद्दालादिक बरनिये, कपटी कुटिल अनंत ॥४॥ शब्दार्थजाल = कुचि र केश। चंद्रिका स्त्रियों का शिरोभूषण । हरिघोडा। कुदाल = कुदारी। अनंत =और भी असंख्य चीजें हैं जिनकी गणता 'कुटिल' में हो सकती है। मूल-.-भोरजगी वृषभानुसुता अलसी विलसी निशि कुंजबिहारी। केशव पाचति अचल ओरनि पीक की ल क गई मिटि कारी ।। बंक लगे कुच बीच नखच्चत देखि भई दृग दूनी लजारी । मानौ वियोग बराह हन्यो युग शैल की संघिन इंगबै डारी।१० शान्दार्थ-अलसी = अलमाई हुई। ओर-छोर, किनारा। लजारो लजित । संविजिलन स्थान । इंगवैशूकरदत, चीर । भावार्थ-सरल ही है। मोद-इसमें नख और शूकरदंत की कुटिलता का सहारा लेकर कोली अच्छी उत्प्रेक्षा की गई। यही अलंकारता है। विशेष-विति हो कि अन्य टीकाकारों ने 'हरिनरव' का अर्थ 'सिंहनख' लिया है, पर हमने हरि और नख दो शब्द माने हैं। कारण यह कि उदाहरण में न बच्छन का वर्णन है, और वह मानव नस्त त 'क्षत' है। कुदिलों की गणना में

  • हरिन' का अर्थ सिंहलख लें, तो मानव नख का नाम गणना में

नही मिलताजिल की कुटिलता पर उदाहरण की खूबी निर्भर है। हार का अर्थ घाड़ा है ही। हमने यह अर्थ बिहारी कवि के कथनानुसार लिया है। विहारी लिखते है:-"गढ़ रचना, बन्नी, अलक, चित्रा, मोह, कमान । प्रात्रु बैंकाई ही बढ़े