तरुणि तुरंगम तान । बँकाई और कुटिलता एकार्थ हैं।
तुरंगम घोड़ा है हो। सिंहनख टेढ़ा जरूर होता है, पर
उसका समावेश 'अनंत' शब्द में होना चाहिये। सरदार
कबि ने 'अनंत' का अर्थ शेषनाग लिया है। पर जब वहाँ
'अहिं' शब्द मौजूद है तब 'शेष' की गणना अलग करना
व्यर्थ है।
४--(निकोण वर्णन)
मूल--शकट, सिंधारो, बन, हल, हरके नैन निहार ।
केशवदास त्रिकोण महि, पायककुड विचारि ॥ ११ ॥
शब्दार्थ-शकट- छकड़ा गाड़ी।
मूल---लोचन त्रिलोचन को केशव विलोकि विधि,
पावक के कुंड सी त्रिकोण कीन्ही धरणी।
सोधी है सुधारि पृथु परम पुनीत नृप,
करि करि पूरण दसहुँ दिस करणी ॥
ज्वाला से जगत जगमगत सुभग मेरु,
जाकी ज्योति होति लोक लोक मन हरणी।
थिर चर जीव हबि होमियत युग युग,
होता होत काल न जुगुति जात बरणी ॥१२॥
शब्दार्थ-त्रिलोचन महादेव । हवि =साकल्य । होता अनि
में साकल्य छोड़ने वाला।
भावार्थ-सरलही है।
५-(सुवृत्त वर्णन)
मुवृत्त = गोल-(लम्वी, चौड़ी, चिपटी, त्रिकोण नहीं)
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प्रिया-प्रकाश