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छठाँ प्रभाव


मूल--वृत्त बेल भनि गुच्छ अरु, ककुद, सौधु के अंग ! कुभिकुंभ, कुच, अंड, मनि, कंदुक, कलस सुरंग ॥१३॥ शब्दार्थ-ककुद - बैल के कंधे और पीठ के बीच वाला ऊंचा गोल और मांसल भाग जिसे डिल्ला कहते हैं। सौध के अंगमहलों के बुर्ज, कारे वा कलसे इत्यादि । कुमीकुंभ-हाथी के मस्तक पर के ऊंचे गोलमाग: अंड ब्रह्मांडा मनि - मुक्ता, मोतो। कंदुक - गेंद । मूल--परम प्रवीन अति कोमल कृपालु तेरे, उरते उदित नित चित हितकारी हैं। केशाराय की सौ अति सुंदर उदार शुभ, सलज सुशील बिधि सूरति सुधारी है । काहू स न जाने हँसि बोलि न बिलोकि जानें, कंचुकी सहित साधु सूधी बैसवारी है। ऐसे कुचनि सकुचति न सकति बूझि, हरि हिय हरनि प्रकृति किन पारी है ॥ १४ ॥ शब्दार्थ-उदित= उत्पन्न । सों सोशंद। उदार- - स्वभाव की अति वैसवारी-युवती । पारी है= डाली है। (विशेष)----कोई सखी नायिका तथा उसके कुचों की प्रशंसा करके मान छोड़ाना और दोनों को मिलाना चाहती है। वह कहती है कि:- भावार्थ-तेरे ये युगल कुच तेरे परम चतुर, कोमल तथा कृपालु उर से पैदा हुए हैं और तेरे चित्त के हितकारी हैं। सूची सरल।