मूल--वृत्त बेल भनि गुच्छ अरु, ककुद, सौधु के अंग !
कुभिकुंभ, कुच, अंड, मनि, कंदुक, कलस सुरंग ॥१३॥
शब्दार्थ-ककुद - बैल के कंधे और पीठ के बीच वाला ऊंचा
गोल और मांसल भाग जिसे डिल्ला कहते हैं। सौध के
अंगमहलों के बुर्ज, कारे वा कलसे इत्यादि ।
कुमीकुंभ-हाथी के मस्तक पर के ऊंचे गोलमाग: अंड ब्रह्मांडा
मनि - मुक्ता, मोतो। कंदुक - गेंद ।
मूल--परम प्रवीन अति कोमल कृपालु तेरे,
उरते उदित नित चित हितकारी हैं।
केशाराय की सौ अति सुंदर उदार शुभ,
सलज सुशील बिधि सूरति सुधारी है ।
काहू स न जाने हँसि बोलि न बिलोकि जानें,
कंचुकी सहित साधु सूधी बैसवारी है।
ऐसे कुचनि सकुचति न सकति बूझि,
हरि हिय हरनि प्रकृति किन पारी है ॥ १४ ॥
शब्दार्थ-उदित= उत्पन्न ।
सों सोशंद। उदार-
- स्वभाव की अति
वैसवारी-युवती ।
पारी है= डाली है।
(विशेष)----कोई सखी नायिका तथा उसके कुचों की प्रशंसा
करके मान छोड़ाना और दोनों को मिलाना चाहती है। वह
कहती है कि:-
भावार्थ-तेरे ये युगल कुच तेरे परम चतुर, कोमल तथा
कृपालु उर से पैदा हुए हैं और तेरे चित्त के हितकारी हैं।
सूची
सरल।
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