पृष्ठ:प्रेमघन सर्वस्व भाग 1.djvu/२६४

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श्री सूर्य स्तोत्र प्रारम्भ ( रोला छन्द ) जय जय परब्रह्म परतच्छ सरूप सोहावन । जय जय आदि ज्योति साकार ईस दरसावन ॥१॥ जय जय जय जग सृष्टि स्थिति लय कारन कारन। जय जय जय जग जनक जयति जय जग दुख हारन ॥२॥ जय पूषा, जय सूर्य, सहस्र अंशुमाला धर। जयति भानु भगवान, भास्कर देव, दिवाकर ॥३॥ जय जय जगदाधार, जयति सब देव नमस्कृत। जय जय असरन सरन, हरन दुख दोष अपरमित ॥४॥ जय आदित्य अशेष शक्तिधर, जन मन रंजन। जय सुपर्ण, जय तपन, जयति जय प्रभु जग बन्दन ॥५॥ जय जय जगत प्रदीप, अर्यमा, भग, त्वष्टा रवि। जयति गभस्तिमान, अज, अर्क तमोनुद, नभ छवि ॥६॥ आदि देव, जय द्वादशात्मा, जगत चक्षु नित। सविता, धाता, विवश्वान, वेदांग वेद कृत ॥७॥ जयति विभावसु विश्वकर्म हरिदश्व विभाकर। जय पतंग ग्रहपति विहंग खग नारायण नर॥८॥ जयति अंशुमाली प्रद्योत, सुरथ कमलाकर। एकचक्र जय गायत्री जय प्रिय जोगीश्वर॥९॥