पृष्ठ:प्रेमघन सर्वस्व भाग 1.djvu/४५३

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हाय दिल दरद न जानत कोय॥टेक॥
पीर कौन आनत को मानत, कासों कहूँ दुख रोय॥
कोऊ कछु पूछै नहिं कहनों चुप रहिये मुख जोय।
बद्रीनाथ कहा फल प्यारे, भरम मरम को खोय॥८०॥

चितै चित चोरत चट चित चोर॥टेक॥
मुख मयंक मुसुकानि माधुरी, मोहि लियो मन मोर।
बद्रीनाथ बनक बानक मन, बसी करत बर जोर॥८॥

मागत चन्द श्री बृजचन्द,
मातु पै मचले न मानत करत बहु छल छन्द।
बाल कौतुक करत लोटत, भूमि मैं नद नन्द॥
यदपि जननी बहु मनावत बचन के करि फन्द।
पै न बद्रीनाथ कविवर, सुनत आनन्द कन्द॥८२॥

कहवावत तौ हूँ श्याम सुजान।
प्रीत करी कुब्जा दासी संग सब अवगुन की खान॥टेक॥
तजि राधा रानी सी रमनी के उर अन्तर ध्यान॥
कह ब्रजराज कहा वह डाइन यह आचरज महान॥
श्री बद्रीनारायन जू यह कठिन लगन लग जान॥८३॥

दोऊ मिलि केलि कुञ्जनि करत।
राधिका राधेरमन की सरस छबि लखि परत॥
रास रंग राते रसीले भामिनी भुज परत।
झमकि नाचत सखिन संग लखि भोर लाजनि मरत॥
मधुर अधरा धरनि ऊपर, ललित बंसी धरत।
मोहिबे हित कोकिलन कल, सरस सुभ सुर भरत॥
रति मनोज दुहून की दुति जनु जुगल मिलि हरत।
बिमल बद्रीनाथ कविवर छबि न हिय ते टरत॥८४॥