पृष्ठ:प्रेमघन सर्वस्व भाग 1.djvu/४५७

विकिस्रोत से
यह पृष्ठ जाँच लिया गया है।
—४३१—

गोरे अरु कारे में अब कित,
भेद रहो न बताओ॥
सिंह अजा दोऊ सुख सों जल,
एकहि घाट पियाओ।
तासो अब तो चेत करहु कुछ,
क्यों निज कुलहिं लजाओ॥
साहस करि उद्योग विविध विध,
फिरि वे दिन दिखलाओ॥
सेकरटरी, प्रेसीडेण्ट शब्द सुनि,
स्वान सरिस मुख बाओ।
मिथ्या डर छोड़ों मूरख सठ,
क्लीब कुमति न कहाओ॥
म्यूनिस्पिल के सांच कमिश्नर,
बनि जिय जलद जुड़ाओ।
राय बहादुर ठीक ठीक है,
प्रतिनिधि फलहि फलाओ॥
भारत माता के उर उन्नति,
आशा धीर धराओ।
श्रीयुत लाट रिपन प्रभुवर की,
जय जय कार मनाओ॥९२॥

छयल छोड़ो गई आधी रात॥टेक॥
घर लौं जात प्रभात होय गो, कत नाहक इठलात॥
फेरि कहूँ मिलि जैंहौं तोसों पार पाय कोउ घात।
बद्रीनाथ जान दै प्यारे, सौ सौ सौहैं खात॥९३॥

बसौ इन नैननि मैं नंद नन्द॥टेक॥
युगल जलज सारँग सोभित कच राहु सहित मुख चन्द।
चिबुक गुलाब बिम्ब अधराधर, सुख को सरस अमन्द॥