पृष्ठ:प्रेमघन सर्वस्व भाग 1.djvu/४९१

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बादये वस्ल की उम्मेद में हम,
शाम से सुबह जपा करते हैं।

शिकवये कत्ल किया जब मैंने,
हँस के बोले कि बजा करते हैं।
झिड़कियां खा के याद की ऐ अब्र,
गालियाँ रोज सुना करते हैं॥५॥

बगरजे कत्ल गर शमशीर अवरूवी उठाते हैं,
इसी उम्मीद में हम भी एलो गरदन झुकाते हैं।
हजारों जां वलव होते उसी दम कूये जाना में,
अदा से जब कभी खिड़की का वो परदा हटाते हैं।
हिनाई हाथ रखकर दीदये तरपर मेरे बोले,
तमाशा देखिए हम आग पानी में लगाते हैं।
लिए सागर मये गुलगूँ वो साकी यों लगा कहने,
कि जो दे नक़द जां हमको उसे यह मय पिलाते हैं।
मसीहा की बहुत तारीफ सुन कर यार यों बोला
हजारों जां बलब हम एक बोसे में जिलाते हैं।
सुनाकर आशिकों को कल वो कातिल यों लगा कहने,
कलेजा थाम्ह लो लोगो अदा हम आजमाते हैं।
नहीं आसां है आना अब्र इस बागे मोहब्बत में,
जहां दोनों से जाते हैं वही इस जा पर आते हैं॥६॥

ऐ सनम तूने अगर आँख लड़ाई होती,
रूह क़ालिब से उसी दम ही जुदाई होती।
तू ने गुस्से से अगर आँख दिखाई होती,
रूह क़ालिब से उसी दम निकल आई होती।
हफ़्त इक़लीम के शाही का न ख्वाहां होता,
उसके कूचे की मयस्सर जो गदाई होती,