पृष्ठ:प्रेमघन सर्वस्व भाग 1.djvu/५०९

विकिस्रोत से
यह पृष्ठ जाँच लिया गया है।
—४८४—

गुण्डानी लय


नैन सजीले बैन रसीले छैल छबीले तेरे रे॥
नित टरकाय, हाय! क्यों मारत, दिलवर प्यारे मेरे।
यार प्रेमघन! बेदरदी छवि देखलावत नहिं एरे॥१३॥

दूसरी


एक दिन तोरे रे जोबन पर चलिहैं छूरी तरवार।
रतनारे मतवारे प्यारे दूनौ नैन तोहार॥
धानी ओढ़नी सोहै सीस पर, अंगिया गोटेदार।
यार प्रेमधन ललचावत मन बरबस हाय हमार॥१४॥

बनारसी लय


हम तो खोजि २ चौकाली चिड़िया रोज फंसाईला।
जहाँ देखि आई, सुनि पाई, बसि डटि जाईला हो॥
चोखा चारा चाह, जतन के जाल बिछाईला।
पट्‌टी टट्‌टी ओट नैन कै चोट चलाईला हो।
कम्पा दाम लगाईला चटपट खिड़पाईला।
यार प्रेमघन! यही तार में सगतौं धाईला हो॥१५॥

दूसरी


बहरी ओर जाय बूटी कै रगड़ा रोज लगाईला॥
बूटी छान, असनान, ध्यान कै, पान चबाईला।
डण्ड पेल चेलन के कुस्ती खूब लड़ाईला हो॥
बैरिन सारन देखतहीं घुइरी, गुर्राईला।
त्यूरी बदलत भर में लै हरबा सटि जाईला हो।
कैसौ अफगातून होय नहिं तनिक डेराईला।
गुरू प्रेमघन! यारन के संग लहर उड़ाईला हो॥१६॥