पृष्ठ:प्रेमघन सर्वस्व भाग 1.djvu/५२४

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दूसरी


बिलसत बदन अमन्द चन्द पर काली घूँघरवाली रामा।
हरि २ लोटैं लट मानो काली नागियां रे हरी॥
सोहै नाक नथुनियाँ, लटकैं मोतिन की लटकनियाँ रामा।
हरि २ जियरा मारै कमर परी करधनियाँ रे हरी॥
मन्द मन्द मुसुकनियाँ, बाँकी भौंहन की मटकनियाँ रामा।
हरि २ भूलै नाहीं मधुर बोल बोलनियाँ रे हरी॥
गति गयन्द गामिनियाँ, छम् छम् बाजै पग पैजनियाँ रामा।
हरि २ कुच नितम्ब के भार लंक लचकनियाँ रे हरी
अजब उमंग जवनियाँ डाले जादू जनु मोहनियाँ रामा।
हरि २ रसिक प्रेमघन सम हम पर तू जनियां रे हरी॥६४॥

तीसरी


जादू भरी अजब जहरीली मानो हनत कटारी रामा।
हरि २ बाँके नैनन की चंचल चितवनियाँ रे हरी॥
सुभग सौसनी सारी, सोहै तन पर कैसी प्यारी रामा।
हरि २ बादर मैं ज्यों दमकै दुति दामिनियाँ रे हरी॥
कोकिल बैन सुनाय, मन्द मुसुकाती क्या बल खाती रामा।
हरि २ मदमाती जाती गयन्द गामिनियां रे हरी॥
बरबस मन बस किये प्रेमघन बरसत रस इतराई रामा।
हरि २ इत आई वह कहौ कौन कामिनियां रे हरी॥६५॥

रण्डियों की लय


मनहुँ मदन मदहारी तोरी मनमोहनी मुरतिया रामा।
हरि २ भूलै ना सूरतिया प्यारी प्यारी रे हरी॥
कसके नैन सैन हिय बेधे मानौ कोर कटारी रामा।
हरि २ मुस्कुरानि छबि छहरै न्यारी न्यारी रे हरी॥
गोरे गालन अलकैं, छलकैं सरद चन्द पर जैसे रामा।
हरि २ लोट रहीं नागिनियां कारी कारी रे हरी॥