पृष्ठ:प्रेमघन सर्वस्व भाग 1.djvu/५५३

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दुसरी
मिरजापुरी गुण्डों का यथार्थ चित्र


बनी शकल गुन्डानी, बोलैं गजबै बीहड़ बानी रामा।
हरे चालैं मिरजापुरियों की मस्तानी रे हरी॥
टेढ़ी पगड़ी पर सतरंगा साफ़ा भी बेढंगा रामा।
तर डटा डुपट्टा गुलेनार या धानी रे हरी॥
कुरता भी चौकाला, डाला झूलै तिस्पर माला राम।
हरे गण्डा गले भले गांधै सैलानी रे हरी॥
कसी किनारदार धोती, घुटने के ऊपर होती रामा।
हरे चलैं झूमते ज्यों हथिनी बौरानी रे हरी॥
काला कमरबन्द का फाँड़ा ऊँचा, हथवाँ खाँडा रामा।
हरे कमर कटारी छूरी जहर बुझानी रे हरी॥
काँधे मोटी लाठी, पैसा कौड़ी एक न गांठी रामा।
हरे तौभी डकरैं पी पी करके पानी रे हरी॥
काला टीका बेंड़ा पर, महावीरी ऊँचा टेढ़ा रामा।
हरे मुँह में चाभल पान, बैल ज्यों सानी रे हरी॥
चेलन डण्ड पेलाये, कुछ को कुस्ती खूब लड़ाये रामा।
हरे सूखे चने चाभके बूटी छानी रे हरी॥
संझा छोड़ अखाड़े, करके यक्का भी येक् भाड़े रामा।
हरे घूमि डटे "सत्ती" या "तिरमोहानी"[१] रे हरी॥
कमर तनिक लचकाये, कुछ कुछ गर्दन भी उचकाये रामा।
हरे अड़े घुइरते संगिन संग दिलजानी रे हरी॥
अण्ड बण्ड बतलाते छिन छिन मोछा ऐठंत जाते रामा।
हरे भौंह तान आंखैं कर ऐंचा तानी रे ह॰॥


  1. चौक वा उन मुहल्लों के नाम जहाँ वेश्यायें रहती हैं।