पृष्ठ:प्रेमघन सर्वस्व भाग 1.djvu/५८०

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ठुमरी


बरबस लावत चित पेंच बीच, लटकाली घूघर बालियाँ॥टेक॥
चमकीली चौकाली आली; मानहुँ पाली ब्यालियाँ॥
बद्रीनाथ फँसावनि जाली वाली चाल निरालियाँ॥

जानत हूँ सैयां आज चले मोरारे नयनां फरको जाय॥टेक॥
टूटत बन्द चोली के, चुड़िया कगना सरको जाय॥
बद्रीनाथ आज भोंराई सन जियरा धरको जाय॥

सखीरी जनि पनियां कोऊ जाव—
सखी मग रोकत ठाढ़ो नन्द कुमार॥टेक॥
बद्रीनाथ चुरावत चित नित—बेन बजाई बंसीवट—जमुना तट॥

संवलिया रे हो सैयां लागी तुमसों प्रीत॥टेक॥
पहिले प्रीत लगाय पियारे, अब कत करत अनीत॥
बद्रीनाथ यार अलबेला बांको मोहन मीत॥

गुजरिया रे हो गुयां पानी कैसे जांव॥टेक॥
नित नित रार करत कुञ्जन बिच, मोहन जाको नावँ॥
बद्रीनाथ न रहिबे लायक अब यह गोकुल गांव॥

सखि सोवत रहीं सपन बिच पिय अपना मैंने देखा॥टेक॥
धेनु चरावत बंसी बजावत तेहि बिच गावत एरी गुँयारे॥
बद्रीनाथ कांकरी लैकर मोपर मारत एरी सैंयारे॥
एतने में खुलि गई नींद हाय! पिय अपना मैंने देखा॥