पृष्ठ:प्रेमघन सर्वस्व भाग 1.djvu/६०२

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नकटा खिमटा


सुथरी सेजरिया साजि के रे—जोहौं तोरी बटिया बालम रे॥टेक॥
बिन पिया सूनी सेजिया रे—लेत करवटिया बालम रे॥
पिय जिय निठुर न आवते रे—लिखत नहीं पतिया बालमू रे॥
बीतत नहीं वियोग की रे—बजर सम रतियां बालम रे॥
बिन पिय बद्रीनाथ जू रे—फटत नहिं छतियां बालमू रे॥

सूही ओढ़नियां ओढ़ि के रे—केकर जिय हरबे गोरिया रे॥टेक॥
भौंह धनुहियां तानि के रे—केकर जिय मरबे गोरिया रे॥
बद्रीनाथ दे कजरा रे—केकर जिय चोरिबे गोरिया रे॥

विचित्र खिमटा


मिलन पिया जैहौं सैयां नगरी रे॥टेक॥
नहिं जानें कित पीव बसत हैं अनजानी डगरी रे॥
बद्री नारायन नहि दरसत ढूँढ़ी ब्रज सिगरी रे॥
 
निरखत नारि बिरानी, सखी दिलजानी कधैमया रे॥टेक॥
बद्रीनाथ ढीठ ढोटा यह, वीर बड़ो सैलानी॥
बरबस बांह पकरि बिलमावत, भरन देत नहिँ पानी॥

रोकत मग हठ ठानी, सखी सैलानी कन्हैया॥टेक॥
वा बिलोकि नहिँ रहत ज्ञान बुधि, लोक लाज कुलकानी।
बद्रीनाथ यार अल्बेला छलबलिया दिलजानी॥
सखी सैलानी कन्हैया।
नीकी लागै यार तोरी बोलिया॥टेक॥
बद्रीनाथ लियो बरबस सूरति मूरति मयन सम भोलिया॥

नीकी लागे सूरत तोरी जनियां॥टेक॥
बद्रीनाथ गरीबन मारन जोबन मदमाती खतिरनियां॥