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गुप्त गोष्ठी गाथा

क्याकि इसे वे दोष मानते और जानते कि हमे लोगों ने केवल हँसी का पात्र मान लिया है, यहाँ तक कि उसके मार डालने के लिए, मारण मन्त्र का प्रयोग भी करने लग जाते है, परन्तु कुशल इतनी ही है कि यदि आप उनकी हथेली पर एक मुद्रा धर दीजिए तो तुरन्त वे आपको "चिरञ्जीवी" नामक यन्त्र लिख देंगे कि जिससे आप बुड्ढे ही होकर रह जाय और कभी न, मरें, आश्चर्य तो यह है कि जिसे जिसे उन्होंने अब तक यह यन्त्र दिया, कोई नहीं मरा और इस यन्त्र के द्वारा भी बहुत द्रव्य उपार्जन कर लिया। आप वैद्य भी ऐसे हैं कि जिसे एक गोली रेचक की देदे तो सग्रहणी हो जाय, एवम् ज्वर के शमन के अर्थ जो एक पुड़िया दे तो सन्निपात अवश्य हो जाय, और यदि सन्निपात के छुड़ाने का जो रस दे तो बस प्राण ही छुड़ा दे। धर्म के विपन्न में कैसी ही व्यवस्था ले जाइये एक मुद्रा जो आगे धर दीजिये तो आँख मूँद कर चटपट उसपर हस्ताक्षर कर देगे, अन्यथा उसके विरुद्ध बीस प्रमाण ऐसे ऐसे पुष्ट लिख देंगे कि जिसका खंडन ही किसी से न हो सके। किसी विषय के लिए उद्योग का नाम लेने ही से आप चिढ़ उठते, क्योंकि वे सदैव भाग्य के भरोसे पर मस्त सोते और कहते हैं कि 'यद् भावि न तद्भाविभावि चेन्न तद न्यथा। इति चिन्ताविषनोयऽमंगद किन पीयते॥' ् और यदि देशोन्नति वा धर्मोन्नति का नाम ले लीजिये तो वे बहुत बिगडते, क्योंकि उनका यह निद्धात है कि कलिकाल का जो धर्म हमारे शास्त्रा में कहा गया है सो होगा, इससे श्रास्तिक होकर यन करना अनिवार्य है, साराश यह कि आपका आचार और मत हमारे पूर्व प्रशसित कृपाकर मित्रजा श्री ५० शास्त्री जी से नितान्त विरुद्ध है। यद्यपि उनके सम्मुख ये बहुत नहीं बोलते, क्योकि उन्हें कुछ बडा करके मानते है, परन्तु उनकी बात एक भी नहीं सुनते और न उनके कहने के अदुमार आचरण करते हैं श्राप प्राय सबी बातो मे अपना मत भी प्रकाशित करते है परन्तु सबसे विरुद्ध और जिसे सुनकर कोई भी प्रसन्न न हो। आप जो कुछ लिखते भी हैं मा दसी भॉति का अथवा हास्य विषयक न गद्य किन्तु पत्र भी ऐसा ही काव्य के नौ रस मे से इन्होने केवल दो रस पसन्द किया है। अर्थात् हास्य और वीभस्म, और करुणा रस का तो नाम भी सुनने म राने के डर के मारे भाग जाते हैं इमी लिए हम लोगों को जब उठाना होता है तब उत्तर रामचरित वा हरिश्चन्द्र नाटक हाथ मे उठा लेते, और अप स्विसक देते हैं। आप केवल आनन्द की वृद्धि चाहते, विशेष कर हास्य द्वारा, जिससे शारीरिक और मानसिक उन्नति हो चाहे कोई भी विषय क्यो