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गुप्त गोष्ठी गाथा

(फ़िलासोफी) और बड़ी बड़ी विद्याओं के ग्रंथ देखने, मनन करने और परीक्षा करने में व्यतीत होता है। कुछ तद् विषयक व्याख्यानों के लिखने वा कुछ सत् कविता करने अथवा कला विषयक क्रिया के सम्पादन करने में कुछ काल कटता है, क्योंकि संसार का मुख्य सार संग्रह कर अन्य समग्र विषयों का आप ने पूर्ण निरादर कर दिया है। मैं सदैव उन्हें एक न एक नये ढङ्ग पर बना और एक नई सृष्टि रचता देखता आया हूँ, एवम् जिस वस्तु ने उन्हें झुका पाया उसकी धज्जियाँ उड़ाकर तभी पिण्ड छोड़ते पाया है और जब जो भूला तो फिर उसको फिर भी करते न देखा।

कभी जो वाटिका पर दृष्टि फिरी तो देखा कि 'आप स्वयम् अपने कर कमलों से लताओं की डालियाँ सुलझा कर सुर-सुन्दरियों की अलकावलि सदृश संगर-संवार कर टट्टियों में बांधने ग्रीष्मालय में घुस चीन के चित्र-विचित्र मनोहर सुमन विकसित गमलों को सजा रहे हैं, वा कतरनी लिये पत्ते और रहनियों को कतर रहे हैं, कभी जल-यन्त्रों को सहस्र धाराओं का निज निमिल रचना-वैचित्र्य दिखाते अनेक अनेक प्रकार से चलाकर अनोखी कला कुशलता प्रगट करते हैं यों ही अग्नि क्रीड़ा के भी ऐसे ही अनेक अद्भुत प्रकार निकाले कि देखते ही बन पाए।

चित्रकारी आप की तो प्रशंसा की सीमा उल्लंघन करने वाली होती। उनकी चित्रकारी जो भाग्य से देखने में आ जाय तो संसार विस्मृत हो जाय। सुगन्ध की सामग्रियाँ ऐसी ऐसी अद्भुत रीति रचना की कि क्या कहना है। फुटकर शिल्प चातुरी देखने लगिए ता आँखें थक जाय और मुक्तकन्ट होकर आप यही कह दे कि "धन्य भारत क्या तेरे पुत्रों के मस्तिष्क में भी ये सब सामग्री भरी है"। इन सब कलाओं के बड़े बड़े चतुर कारीगर मनुष्य भी आपके यहाँ संग्रहीत हैं, पर वे सब चेले बने हैं, गुरु सबके अकेले श्राप ही हैं। वर्षा से जब गंगा जी में गढ़ आई तो देखियेगा कि आप स्ट्रीमलाञ्च पर उड़े धार में फंसे चले जाते हैं और कोस दो कोस जाकर कूद पड़े तो किन किन कतर ब्योंत से तैरते चले आते, कभी चाँदी की तुमड़ियों और टीन के कनस्टरों पर चढ़े आप भौंर और नादों में धूम रहे हैं, उसी पर सितार, बजा रहे हैं वा गीता पाठ कर रहे हैं, कभी रात रात भर बैठे श्राप दूरबीनों से ग्रहों को देखते और उसी का हिसाब लगाते रह जाते हैं। पशु पक्षियों का संग्रह अत्यन्त ही उत्कृष्ठ संगीत और साहित्य की ऐसी समझ तो काहे किसी को होली, सब में अपना उत्तम कोटि का अभ्यास अश्वारोहण, लक्ष्य भेदन, शस्त्र,