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प्रेमघन सर्वस्व

संचालन, गान वाद्य कुशलता, और विविध गुण इनके ऐसे हैं कि उनका वर्णन होना कठिन है। इनके घर पर कभी जाइये तो और अनेक ऐश्वर्य के सहित आपको विद्या और कला का तो वहाँ समुद्र लहराता दिखाई पड़ेगा। कभी आप अपने मिस्त्रीखाने में जाकर मिस्त्री को समझा रहे हैं, "इसके लङ्गर मैं इतना बोझा और दो, और एक के स्थान तीन पहिए लगायों तब यह पङ्खे का यन्त्र ठीक हो, इस इंजन का अमुक पुरजा उस चाल का बनाओ जैसा हमने बैतला दिया है कहते पाइयेगा। कभी देखियेगा कि शीशियों में से तेजाब नापते और रसायनिक कृत्य में लवलीन वा फोटोग्राफ के केमरा का पोसचर मिलाते दिखाते या लेखनी चलाते रंग वा शब्द की विचित्र चित्रकारी करते लखाई पड़ते! कभी गीतगोविन्द के अलाप में अचेत, कभी श्री भाद्भागवत का पत्र हाथ में और अश्रुधारा प्रवाह निरन्तर निहारते रह जाइये, कभी देखिये तो सितारियों और पखावनियों का जमाव जम रहा है कथक कलावंत ढाढ़ी, और गवैयों का मुजरा हो रहा है, किसी की भीड़ और जमजमें, किसी की गति और परने की प्रशंसा, किसी के आलाप और तान की बडाई गाई जाती, किसी के मूर्छना और किसी के सम ताल पर लोगों के मन बिक रहे हैं, और स्वर का समुद्र उमड़ रहा है, ताल की तरंग उठ रही हैं मानो इन्द्र का अखाड़ा उतर रहा है और वह मनोहरं वाटिका अमरावती की समा सुझा रही है। क्योंकि गुणवान् के आगे गुणियों के गुण की परीक्षा है यह कछ नित्य का गाना नहीं है। कमी कवि और शायरों की मण्डली जुड़ रही है,तो वाह वाह और धन्य धन्य की पुकार है, कमी भक्त और विरक्तों का समाज शोभा दे रहा है तो नैमिषारण्य और दून्दाबन की झलक वहीं झलक उंटती, विशुद्ध प्रेम और शान्ति का राज्य वहीं स्थापित दिखाता है, कभी विद्वानों के उट्ट के ठट्ट वहीं इक देख लीजिए, और प्रत्येक विद्या के विद्वान् बैठे संसार का सारांश वहीं बिलगा रहे हैं।

कमो देखिये तो किसी सुनसान कमरे में आप एक आराम कुर्सी पर बैठे कुछ सोच रहे हैं, और पास एक तिपाई पर कुछ कागज़ पेन्सिल और कलम दानं, दूसरी पर पान दान, इत्रदान, काल बेल (आवाहक्रवरिका) और नीचे पीकदान रक्खा है, द्वार पर दो एक सेबक चुपचाप बैठे हैं, किसी को भीतर घुसने की आज्ञा नहीं है। इसी भाँति महीनों वह किसी से मिलते नहीं, जाने से द्वारपाल यही कहते कि हुजूर, दो हफ्ते से संकार न तो बाहर तशरीफ़ लायें और न किसी को बुलाया, मुश्किल तो यह है कि इत्तिला भी बन्द है।