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गुप्त गोष्ठी गाथा

कोई झूठा भी काम है, तो प्रथम तो सन्देशा ही सुनकर आप के टरकाने की युक्ति निकाल देंगे, कदाचित् श्राप उन तक पहुँच भी जाँय तो चटपट लेटकर कराहने लगेंगे, और आपको उठाकर तभी छोड़ेंगे‌। उपकार करने का आपने सौगन्ध खा लिया है और देने के नाम से तो घर का किवाड़ ही दे लेते इसी डर से कई द्वारपाल और नौकर भी रख छोड़े हैं।

आपका द्रव्य केवल निम्नलिखित दशात्रों के अतिरिक्त और किसी भांति व्यय नहीं हो सकता।

अर्थात् या तो कोई माल भरी नाव डूब जाय या कोई गुदाम जले, अथवा कुछ रूपया दिवाले में मारा जाय, वा कोई उनका कार्य कर्ता बा ग्रमाश्ता खा ले, अथवा किसी व्यापार में बाटा या जाय। परन्तु हाथ उठाकर वे केवल अपने गावों की मालगुजारी, टैक्स वा किसी सरकारी हाकिमों के दबाव से कुछ चन्दा भी दे देते हैं, सो भी केवल इसलिए कि कोई खिताब मिल जाय। आप आनरेरी मजिस्ट्रेट और म्यूनिस्पल कमिश्नर तथा लोकल बोर्ड के मेम्बर तो हैं, परन्तु आप इतने ही से प्रसन्न नहीं होते। क्योंकि वे चाहते हैं कि भला गवर्नर जनरल के नहीं तो लेफनेन्ट गवर्नर वा छोटे लाट के कौन्सिल के मेम्बर तो अवश्य हो एवम् राय बहादुर छोड़ कर राजा वा सी॰ एस॰ आई॰ अथवा सी॰ आई॰ ई॰ की उपाधि तो पा जाय। इसीलिये वे बहत उद्योग किया करते हैं। म्यूनिस्पल कमिश्नर तो वे इसीलिए होना चाहते हैं कि जिसमें घर का कूड़ा बिना कुछ दिये ही उठ जाया करे, और द्वार स्वच्छ रहे, तथा जब घर से निकले तो भङ्गी और चपरासी वा जमादार या सड़क दरोगा उन्हें झुक कर सलाम तो कर लिया करें। वे किसी पर जो ऋद्धित हों तो कह दें कि "बचा, तुम जानते नहीं, पाखाने को साफ न करने की रिपोर्ट करा कर तुम्हें रुलादेंगे, मकान बनाने का हुक्म न देंगे" और यही फल श्राप थानरेरी मंजिस्ट्रेटी में भी निकालते और कहते कि "जो भूले से भी कहीं नहर में पेशाब करते पकड़ गये तो बिना पाट दिन कैद किये कभी न छोड़ेंगे।

आप हाक्रिमों के यहाँ मिलने को भी बहुत जाया करते हैं और जब जाते, तो जिससे कुछ भी असन्तुष्ट रहते उसकी वहाँ इतनी निन्दा कर चलते कि बस अश्रद्धा ही करा देते हैं। इसलिये कि सब लोग इनकी बात को सत्य समझते, क्योंकि वे एक प्रतिष्ठित व्यक्ति गिने जाते हैं। इसके अतिरिक्त उन्हें कुछ बात चीत करने का ढंग भी बहुत ही अच्छा गाता है, जिसके कान में आप कर्णपिशाची की भाँति चिपके, फिर उसको साँचे में उतार कर तभी छोड़ेंगे।