पृष्ठ:प्रेमघन सर्वस्व भाग 2.pdf/११८

विकिस्रोत से
यह पृष्ठ जाँच लिया गया है।
८६
प्रेमघन सर्वस्व

लोग हैं, वह तो सिवा अंगरेजी शराब के और खास कर "एक्शा नम्बर-वन्" के और कोई मुनश्शी चीज़ हाथ से नहीं छूते क्योंकि उसमें हिन्दुस्तानियत की बू आती है। इसीलिये वे लोग बुट छोड़कर हुक्का भी नहीं पीते, जिनकी सोहबत से हमारे नब्वाय साहिब भी गो चुर्ट तो हाथ से नहीं छते, पर हाँ शराब से बहुत शौक कर लिया है। कुशल इतनी ही है कि आप में इन साहिब लोगों की और चाले नहीं आई।

इनमें से अनेक जन अनेक अनेक प्रकार से इन्हें गिरिफ्तार कियें हुए हैं, कोई तो मित्र बन कर गले के हार हो रहे हैं, कोई साथी बने साथ ही नहीं छोड़ते, कोई घर के सग बन कर घर के सग बन रहे हैं, जिनमें कई किस्म के तो भाई है—माई, चचाजाद भाई, मौसेरे भाई, फुफेरे भाई, कोका भाई और दूं बोला भाई फिर भला मतीजों की क्या गिनती है। अनेक उनमें ऐसे अनोखे नाते जोड़ते कि सुन कर छक्के छूटते और सोचते बुद्धि हार जाती है। कोई कहते कि "मैं नव्याब साहिब के वालिदे माजिद के खुसुर के साले का दामाद हूँ" कोई बयान करते कि—"मैं आपकी फूफी के नवासे का हम जुल्फ हूँ" कोई साहिब फर्माते कि—"नव्वाब साहिवे मरहूम के मौसेरे भाई की दुखतरे नेक-अख्तर मेरे साले के भतीजे से मन्सूब हुई है। कोई कहते कि "मैं इनके हमशार की खास का मामू हूँ" और कोई साहिब मुसाहिब, काईखेरन्देश और कोई दुआगो बन कर पीछा नहीं छोड़ते।

बातों में सफाई ऐसी कि-बे तकल्लुफ कहते कि—"अजी बन्दःपर्वर अभी अनीब फजलेखुदा खाकसार के गरीब खाने पर भी चन्द गर्ना शाम सबह चार रोटियाँ खा लेते हैं और क्या कहूँ इत्तिफाक को, नहीं जो आप कभी झोपड़ी की रौनक बख्शते तो तमीज इस बात की कर सकते कि गरीबों के नमक रोटी में भी कुछ लज्जत है, खैर जियाद तूल के साथ अर्ज फिजूल है घर पर भी कई किस्म का हर्ज हुमा करता है, और मुतअल्लिकीन कुछ आर्जद खातिर रहते, पर क्या करूँ इस भोले लड़के नवाव ने ऐसा कुछ जादू या सिह सा कर दिया है कि इसे छोड़ने को दिल ही नहीं चाहता। माशा अल्लाह चश्मिवदूर न सिर्फ इसकी सूरत प्यारी और दिलफरेब है, बल्कि उसपर सीरत बदर्जहा हाबी है। बखुदा ऐसा हलीम और सलीमुत्तबा लड़का तो आज कोई शाही बराने में भी नहीं है। यह मुरौबत सखावत, बुदवारी, खाकसारी व इनकिसारी और दर्यादिली, खुदा के घर से इसी को मिली है। चुनाँचे जब वह मुस्करा कर कह