पृष्ठ:प्रेमघन सर्वस्व भाग 2.pdf/१२

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यह है वर्तमान की मनोहरता। पर अतीत की मृदु स्मृति इससे कम प्रभावशालिनी नहीं है, लेखक अपने अतीत पर कम गर्वान्वित नहीं होता:—

"कैदी के सम रहत सदा अाधीन और के।
धूमत लुंडा बने शाह शतरंज तौर के॥"

"जीर्ण जनपद"

अतीत की मधुर स्मृति और वर्तमान की वास्तविकता का जो समन्वय भारतेन्दुयुग में हुआ है वह भारतेन्दु युग की देन है। प्रेमधन जी अपने काव्य में जिस प्रकार व्यक्तिगत अतीत जीवन की मधुर स्मृति को संनिविष्ट किया है, उसी प्रकार मानव जीवन के स्मृत्याभास के चित्र अपने कान्य जीर्ण जनपद', "अलौकिक लीला", "कलिकाल तर्पण" आदि कविताओं में प्रतिष्ठित किया है। कवि के अतीत स्मृति वाले काव्यों में समय की गहरी छाप है, क्योंकि उसकी व्यापक मनोदृष्टि जगत और जीवन की ओर पड़ी है। इसी से लेखक समय का सच्चा आलोचक बन जाता है उसके हृदय में उदारता, भावुकता तथा गंभीरता की प्रधानता है। देश की व्यापक दुर्व्यवस्था से कवि हृदय क्षुभित है उसके हृदपटल पर भारतीय भव्याकाश के भयावशेषों का स्मृतिचित्र अंकित है। सच है सुख और दुख के बीच का वैषम्य जैसा मार्मिक और हृदय स्पर्शी होता है वैसा ही उन्नति और अवनति, प्रताप और हास के बीच का। इस वैषम्य के प्रदर्शन में प्रेमधन जी ने भारतीय पतनकाल के असामर्थ्य, दीनता, विवशता, उदासीनता के करुणोत्पादक चित्र को अपनी कविताओं में रख कर अपनी काव्यभूमि को चिरंतनता प्रदान की है। वहीं पर साथ ही साथ ऐश्वर्य काल के प्रताप, तेज-पराक्रम के वृत्त स्थान स्थान पर रख कर कवि ने अपनी इन्हीं आशाओं पर उज्ज्वल भविष्य के मंगलमय मंगल का उच्च प्रासाद निर्मित क्रिया है। भारतीय परिस्थितियों के गंभीर चिंतन के अतिरिक्त प्रेमघन जी को जब कल्पना जगत् पर हम विचरण करते पाते हैं, तब कवि भावपक्ष तथा विभावपक्ष से संयुक्त प्रेम काव्य की परम्परागत भावनाओं का चित्रण करता हुश्रा, प्रेम की विविध दशाओं को, (आलम्बन और उद्दीपन विभावों के अन्तर्गत)