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प्रेमघन सर्वस्व

दूसरे के ख़िलाफ़ रूजू हों तो जरूर ही उसकी खूबी और ज़ेबाइश में फ़तूर वाका होगा।" पस हम लोगों का यह काम है कि दोनों अकवास मिस्ल शीर व शकर के मिल जाँय, और जिस तरह मुमकिन हो विहबूदीये-मुल्क करें न कि यापस ही में मर मिटें। इलावा बरी जब जब आपके से ख्याल के लोगों ने ऐसी चाल चली हैं, क्या नेक नतीजा निकला है? सच पूछिए तो सल्तनत इस्लामियाँ के जवाल का बाइस दब्रसल यही हुआ। याद रखिये कि अब यही हिन्दोस्तान हमारा मुल्क है, और यही हिन्दू हमारे संग मुल्की भाई हैं।"

दूसरी शुरफ़ा की गोल वा जमाअत के रहनुमा या पेशवा का इस्मिशरीफ जनाब मौल्वी सैय्यद मुहम्मद मुमताजुद्दीन हैदर साहिब अफ़ज़लुल उलमा हैं, जो कि एक मशहूर व मारूफ खान्दानी आलिम और बहुत ही आला दर्जे के फाज़िल और उस्ताद है। फी ज़माना अरवी और फारसी में यह सानी नहीं रखते। मगर यह कोई नई बात नहीं है, आपके खानदान में यो ही बराबर एक से एक आला आलिम व फाजिल, बड़े बड़े बेदारमगज और मुदयि र असहाब गुज़र चुके हैं, बल्कि शाही ज़माने में इन्हीं के फतवे की सनद थी। अब भी जो इज्जत उलमाय-फरङ्गीमहल व दिहली और उमराय लखनऊ में इन्हें हासिल थे, दूसरे को नहीं। श्राप बहुत ही पाकदिल, नेकनीयत, इन्साफपसन्द, गैर—मुतअस्सिब, खुदापरस्त, जाहिद आरिफ बड़े ही पक्के मुहज्जब और सच्चे मुसल्लमईमान, बुजुर्ग हैं। आपका जो वक्त रोजा नमाजा वज़ीफ़ा और मुतालिया-इ-कलामउल-इल्लाहिशरीफ और यादि इलाही से बचता, वह पाला दर्जे के तालिव-उल-इल्मों के दर्स देने में सर्फ होता। सिवा इसके रोजमर्र कम-अज-कम दो घण्टे हमारे प्रिय मित्र भोले नवाब को कुछ पढ़ाते, और उमातिदीनी व दुनियवी की जरूरी नसीहतें करते, और मुश्किल मुश्किल मसायल व मुअम्में हल करके समझाते अमलाते. और सिखलाते हैं। नव्याबसाहिब बहादुर महम यानी भोले नवाब के वालिदेमाजिद अफ्री अल्लाह अनहो इन्हें बहुत ही इसरार और इन्किसार से वास्ते दन तालीम और तांबयत अपने फन्द अजमन्द केले पाये थे, और वह बदस्तूर सारिक अब तक वही काम कर रहे हैं।

जब कभी आपके सामने इन नई रोशनी बालों या चरिए मुसल्मान या कि मिस्टर निफाक बख्श एम॰ ए॰ अथवा उनके फ़िक के लोगों का जिक्र आता, तो वह बहुत ही, मुतअस्सिफ़ हो सर्द श्राह भरते, और कहते कि