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गुप्त गोष्ठी गाथा

की मुकत में वेकरार है, और कुछ भी दूसरी बात की सुध उन्हें नहीं है। मुद्दतों मातम मनाए बैठे रह जाते, यद्यपि उन्हें कभी-कभी रुपये की फिक्र या किसी देनदार के अदायकर्ज का रस भी दामनगार हो जाता है, मगर इसका सोच या और तफ़क्रातिए दुनिया उन्ह उदास नहीं बना सकत, पर हाँ माशूक का सितम और फुर्कत उन्हें जरूर बेकार व बेकाम बना देती है। इसी से इनसे मिलना कभी कभी बहत ही दुश्वार हो जाता है, क्योंकि वे खुद ये इख्तियार रहते हैं। तो भी सिर्फ चन्द मौकों के सिवा और सब हालत में हम लोग उनके हुजूर में बारि आब होते हैं और जहाँ पहुँच जाते तो चूं कि वह अपनी इनायत से हम लोगों के साथ महज़ बर्ताव बिलातकल्लुफी का रखते लिहाज़ा-विला तअमुल हँसी नौ मज़ाक की बातें कर चलते और चन्द उनके मुसाहबीन और हाज़िरीन जल्सा जो मुनासिबे वक्त हाते, और मौजूद रहते कुछ ऐसे मजे बढ़ाते, कि जो कहने में नहीं पाते। आप हिन्दी जवान जानते हैं और उसकी शादरी से भी बहुत कुछ शौक रखते हैं। बल्कि बहुत सी ठुमरियाँ और दोहरे भी कह डाले है, और उर्दू के तो अच्छे खासे शाइर हैं। इबारात नत्र भी ् आप बहुत अच्छी लिखत, मगर महज मज़ामीन इश्क और मज़ाक या कुछ-कुछ उगात मुतज़ाकर बाला के बारे में!

हम लोगों के मित्र-मण्डली के सातवे मित्र महाशय का नाम जनाब मुशी बिस्मिल्लाह गुलाम लाल साहिब हैं। जाति के आप कायस्थ है, अवस्था साट वर्ष से कुछ ऊपर है, किन्तु वह अपनी जान अपने को केवल पन्द्रह वर्ष का छोकरा बाबीस बरस का नौजवान जानते हैं। बाप बाल सिर में कोई काले नहीं. तो भी खिजाव के जरिये से एक नया नावचिहरे पर बनाये रहते, और पोशाक लिबास से सजे रहते कि जैसे नगर के अनेक गुवक भी न होगे। आपने केवल कोरी फारसी पढ़ी है, और कुछ अरबी में भी जीभ एट लेते हैं, परन्तु हिन्दी किस खेत की मूली है आप जानते ही नहीं, तब संस्कृत की कौन कहे कि इस शब्द को भी आप शंशकीरत कहते है। अंगरेज़ी तो आपके पटने के समय में थी ही नहीं, सिया इसके वे इसे हूशों की जवान बतलाते हैं और इसी कारण उससे बहुत घृणा करते हैं। आप बहुत दिन तक एक देशी राजा के दीवान थे, फिर अँगरेजी सरकार की नौकरी की। अब वृद्ध होने से पेन्शन पा गये और जब केवल पिन्शन से गुजारा होते न देखा, क्योंकि खर्च बहुत अधिक है, और परिवार भारी हैं,